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________________ विविधप्रसंग। ११ जैनहितेषीका प्रस्तुत अंक । हमारी यह बहुत दिनोंसे इच्छा हो रही है कि जैनहितैषीका भी वर्ष भरमें कमसे कम एक खास अंक निकाला जाय और उसमें . किसी एक ही विषयकी खास तौरसे चर्चा हो; परन्तु इस कार्यकी गुरुताका और परिश्रमका विचार करके, साथ ही लोगोंकी अभिरुचिः काभी खयाल करके अपनी उक्त इच्छाको बारबार रोकलेना पड़ता है। किन्तु अबकी बार यह इच्छा इतनी प्रबल हो गई कि इसे हम किसी तरह न रोक सके और समयके न रहने पर-पहलेसे सूचना आदि दिये विना ही हमने खास अंकके ढाचेका यह अंक तैयार कर डाला यद्यपि यह अन्यान्य पत्रोंके समान विशालकाय नहीं हैं और इसमें चित्रादि भी नहीं हैं तो भी जिस तरहके खास अंक हम निकालना चाहते हैं उनका यह छोटासा नमूनेका रूप है । एक दो लेखोंको छोडकर इसके प्रायः सब ही लेख इतिहासमे सम्बन्ध रखनेवाले हैं । हमें डर है कि ऐसे लखे विषयकी चर्चाको पाठक पसन्द करेंगे या नहीं, तो भी यह आशा है कि जो विचारशील सज्जन हैं वे इन लेखोंको और नहीं तो हमारी प्रार्थनासे----आग्रहसे ही एक बार आद्यन्त पढ़ जानेकी कृपा करेंगे और यदि उन्होंने ऐसा किया तो हम अपने परिश्रमको सफल समझेंगे हमारा यह प्रयत्न यदि पाठकोंको रुचिकर हुआ तो हम आगामी वर्षकी श्रुतपञ्चमीको इससे लगभग दूना बड़ा अंक तैयार करनेका प्रयत्न करेंगे। यह. अंक समसे भी कुछ पहले प्रकाशित होता है; इसका कारण यह है कि हम कारणवश अपने घर जा रहे हैं और वहाँ हमें एक महीनेसे अधिक लग जायगा । यदि कोई विघ्न न आया तो आगामी अंक आषाढके अन्त तक अवश्य निकल जायगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522806
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size11 MB
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