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________________ सहयोगियोंके विचार । गंभीर विचार। गृहस्थाश्रम बड़ा कठिन है । इसकी कठिनाइयोंको वह ही अच्छी तरह जानता है जो स्वयं पूरा गृहस्थी हो । जमाना बड़ा नाजुक है, बाल बच्चेदार आदमी न जाने किन किन मुशकिलों से अपने निर्वाह करते हैं और अपनी आबरू बनाये रखते हैं । सन्तान को उत्तम शिक्षा देना और उनके विवाहादि कार्यों में अपना पेट काट कर जातिप्रथाके अनुसार आवश्यकता से अधिक धन खर्च करने के लिये मजबूर किये जाना यह सब बातें कुछ कम कठिनाई की नहीं हैं। किन्तु हमारे खंडेलवाल भाइयों में किसी २ को कभी २ और बडी मुशकिलों का सामना भी करना पड़ता है जिस से उन का गृहस्थ का जीवन और भी दुःखित हो जाता है । इसी प्रकार के कष्ट का एक उदाहरण इस पत्र में मिलता है जो हमारे पास आया है । इस के लेखक ने अपनी एक कठिनाई का हाल लिख कर हमारी राय मांगी है; लेकिन यह प्रश्न एक जातीय विषय का है जिस का सम्बन्ध हमारी जाति की एक प्रचलित रीति से है इसलिये यह उचित मालूम हुआ कि इस मामले को सब भाइयों के सामने रखा जाय कि वे पूर्ण विचार कर अपनी सम्मति प्रगट करें। पत्र में यह हाल लिखा है:___ " मेरी एक कन्या है जिस की उम्र १४ वर्ष के लगभग हो गई है। इसके लिये मैं ने योग्य वर ढूंढने की बहुत कुछ चेष्टा पहले से ही की लेकिन अभाग्यवश अभी तक योग्य वर नहीं मिला । कई अच्छे लड़के अच्छे घराने के देखे भी लेकिन गोत्र न बचने के कारण निराश होना पड़ा । अब लड़की बहुत स्यानी हो गई और इस फिक्र में मेरा मन बड़े क्लेश में है। हाल ही में एक योग्य लड़का जिस की उम्र भी ठीक है और जो अच्छे घराने का भी है मिला है किन्तु विधाता यहां भी वाम होगया । तीन ही गोत्र बचे और एक नानी का गोत्र रह गया जिसने इस सम्बंध के होने में भी वाधा डाल दी है। अब मैं बड़ी आपत्ति में हूं। मैं एक गरीब आदमी हूं । इसलिये धनधानों के समान मुझको स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है । क्या एक नानी का गोत्र न बचने के कारण योग्य वर का परित्याग कर के इस अभागिनी की किसमत को किसी अयोग्य वर के साथ फोड़ कर जीवन भर के लिये इस को दुःख के गढ़े में ढकेल दिया जाय ? क्या ऐसा करने से मैं पाप का भागी न बनूँगा ? क्या तीन गोत्र में विवाह करने की Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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