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________________ परोपकार। ___ जीना उमीका कामका है जिसके जीनेसे और बहुतोंका जीना होता है अर्थात् जो दूसरोंकी सहायता करके उन्हें भी जीवित रखता है। यों अपना पेट तो कौए भी अपनी चोंचसे भर लेते हैं। जीविते यस्य जीवन्ति विप्रा मित्राणि बान्धवाः । सफलं जीवितं तस्य आत्मार्थ को न जीवति ॥ अपने लिए कौन नहीं जीता ? जीना उसीका सफल है जिसके कारण विद्वान् मित्र और बन्धुजन भी जीते हैं अर्थात् जो दूसरोंकी सहायता करते हैं। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् । ज्योत्स्ना नोपसंहरते चन्द्रश्चाण्डालवेश्मान ॥ जिनका चरित उदार है-जो उदारहृदय हैं-सारी दुनिया उनका कुटुम्ब है. अर्थात् मारी पृथ्वीके जीवोंको वे अपना समझते हैं और उनकी भलाई करते हैं । चन्द्रमा अपनी चाँदनीको ब्राह्मणादिके समान चाण्डालोक बग्में भी डालता है। दृढतरगलकनिवन्धः कूपनिपातोऽपि कलश ते धन्यः । यजीवनदानस्त्वम् तर्षामर्ष नृणां हरसि ॥ हे बडे. तू धन्य है ! धन्य है ! ! अपना गला मजबूत रस्सीसे बँधवाकर और कुएमें गिरकर भी तू जीवन ( जल ) दान करके लोगोंकी प्यास बुझाता और उन्हें शान्त करता है। परकृत्यविधौ समुद्यतः पुरुषः कृच्छ्रगतोऽपि पूज्यते । शिरसास्तमयेप्यदीधरद्यदशीतद्युतिमस्तभूधरः॥ परोपकार करनेवाला पुरुष कष्टमें पड़ जाय तो भी उसका आदर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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