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________________ बच्चों की शिक्षा | २०९ / मनाम अंतर है । कोई कहते हैं कि यह १० वर्ष होना चाहिए, कोई कहते हैं. नहीं. यह अवस्था ८ वर्ष ही ठीक है और किसीका मन है कि विद्याकाल ५ वर्ष आरंभ होता है । कोई कोई तीन ही मालकी उमरमें अपने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर देते हैं। पाश्चात्य विद्यागुरुओं का मत ८ से १० वर्ष तकके लिए है; पर भारतवर्ष में प्रथानुसार तथा शास्त्रानुसार यह अवस्था पाँच वर्ष मानी जाती है देश के जलवायुका विचार कर यह विद्यारंभ काल ५ वर्ष ठीक ही माना गया है | इससे ज्यादा और कम दोनों ही अवस्थायें हानिका रक है। पर इससे यह न समझ बैठना चाहिए कि बस पाँच वर्ष कम या अधिक होना एकदम पाप है । नहीं, प्रत्येक बालकका शरीरसंगठन इत्यादि देख उसे ५ से ८ वर्ष तककी अवस्था में विद्याभ्यास शुरू करना चाहिए। इस कालमें उसकी मस्तकशक्तियांका तथा मानसिक भावोका विकाश होने लगता है बालककी वृद्धिका विकाश होने से इन दिनों उसका मन प्रभावों | Impressions ) के लिए परिपक्क हो जाता है । अगर इस अवस्थाको हाथसे जाने दिया जाय और उसे खोटी संगतिमें तथा 1 संस्कारों पड़ने दिया जाय तो उसकी सारी जिंदगी दुःखमय हो जायगी । यहाँ इस बातको बना देना अनुचित न होगा कि शिक्षाको हम केवल वर्णमालाका ज्ञान ही न समझ बैठें। शिक्षाका सबसे प्रधान अंग अथवा गौरव बालक में सत्यनिष्ठा. समयनिर्धारिता (Punctuality ). नियमबद्धता ( Regularity ), स्वच्छता, मनकी एकाग्रता और इन सबसे अधिक मातापिता व गुरुओंकी आज्ञा पालना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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