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________________ २०० जैनहितैषी बच्चोंकी शिक्षा। । 10. मारे देशके नेता व हितेच्छु इस बातको समझने FIRoboost लगे हैं कि देशके उद्धार करनेमें विद्या और - उसकी प्रणाली मुख्य ध्यान देने योग्य है । इस PATNA बातको सब ही जानते हैं कि विद्या धन संसारके समस्त धनोंमें श्रेष्ठ है । न इसे चोर चुरा सकता है न हिस्सेदार ही इसे बाँट सकते हैं । इसका जितना ही उपयोग और दान किया जाय उतनी ही इसकी वृद्धि होती है । ज्ञान जो विद्याके आश्रित है मनुष्यको पशु. पक्षियोंसे श्रेष्ठ बनाता है और बिना इसके मनुष्य जन्मका मिलना भी दुर्भाग्य ही है । नरजन्मका पाना विद्याहीसे सफल है । ऐसी सुखदायिनी विद्याका संपादन सहन और नियमित रूपसे केवल बाल्यकालहीमें किया जा सकता है । इस अवस्थाकी शिक्षा सारी जिंदगीको ढाल देती है। अब देखना यह है कि वह ऐसी कौनसी शिक्षा है जो बालकको उसके भविष्य जीवनमें लाभकारी हो तथा उसे पात्र मनुष्य बनाकर उसको जीवन पर्यंतके लिए सुखी बना देसकती है। यह भी विचारना चाहिए कि ऐसी शिक्षा किसप्रकार और किस अवस्थामें होनी चाहिए और उसका उद्देश्य भी कौनसा होना उचित और लाभकारी है। सबसे प्रथम इस बातको निश्चय कर लेना चाहिए कि बच्चोंका विद्यारंभ किस अवस्थामें होना चाहिए । इस विषय पर विद्वानोंके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522803
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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