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________________ (१६) रकमें एकदम दान करके एकदिनुस्तकमें अपना नाममात्र छपवा देते हैं. और हमने इस ग्रंथमालामें रकमदेनेवालोंका नाम छापनेके सिवाय. प्रत्येकपुस्तककी दोसौ तीनसौ प्रति दान देने के लिये प्रदानकरके उनकी दीहुई रकम कायम रखकर विनाटका पैसे सैकडों शास्त्रोंके दान करनेका वा नाम करनेका सरल तरीका बताया था परंतु तब भी किसीने एक दो रकम इसउपकारीकार्यकोलये नहीं दी। अस्तु अब भी समय है यदि दानवीरमहाशय थोडी २ द्रव्यसहायता दें तो सनातनजैन. ग्रंथमाला न सही । इसचुन्नीलालजैनप्रथमालामें ही सब भाषाओंके ग्रंथ छपा २ कर वितरण करानेका कार्य कराके इस संस्थाको जीवित रख सकते हैं। - सनातनजैनवाचनालय । ... जब कि इस संस्थाका नाम जैनधर्मप्रचारिणीसभा और धर्म: . प्रचारके कई उद्देश्य थे? तब सर्वसाधारणको जैनधर्मके ग्रंथ अखबार देखनेके लिये सुभीता करदने की इच्छासे सनातनजैनवाच: नालय नामकी एक पब्लिक फ्री लाइब्रेरी खालदेनेका भी प्रस्ताव हुआ था परंतु बाहरी कुछ भी सहायता न मिलने के कारण न खुल.. सकी तथापि अनेक विनामूल्य प्राप्तहुई पुस्तकोंके सिवाय संस्थासे हो आजतक ८१-)पुस्तकें हिंदी बंगला उत्तमोत्तम मासिकपत्र : संग्रहकरने आदिमें लगादिये हैं। यदि आलमारी मकानभाडा, पुस्तक अखवारोंकेलिये दो तीनसौ रुपयोंकी सहायता मिल जाय तो यह भी धर्मप्रचारका एक उत्तम साधन प्रारंभ हो सकता है। यदि चैत सुदी १ तक कोई सहायता नहिं मिली तो लाचार अगरेजी पढ़नेवाले जैनीलडकोंके जैनस्पोर्टस्क्लबकी लाइब्रेरीमें ये .सब पुस्तकें प्रदान करदी जायगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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