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( ११ ) चुनीलाल जैनमाला |
पाठक महाशय ! इसप्रथमालाद्वारा हिंदी, मराठी, गुजराती, बंगला, अंगरेजी इन सब ही भाषाओं में जैनधर्मसंबंधी नये ढंग के ट्रेक्ट पुस्तकें छपा २ कर अजैनोंमें विनामूल्य वा स्वल्पमूल्य से प्रचार करनेका उद्देश्य था परंतु विशेष सहायता न मिलने से महावीरस्वामीका ऐतिहासिक चरित्रआदि कोई भी बडा ग्रंथ प्रकाशित नहिं कर सके और न टेक्टें ही १०-२० प्रकाशित कर सके। दो वर्षमें कुल २००) रुपयोंकी ६ ट्रेक्टें करीब १६००० के वितरण कर सके । यदि अनेक महाशय एक एक ग्रंथ सां सौ दोदोसौ रुपयों की लागत के अपने पितामाता आदि के नामस्मरणार्थ छपानकी सहायता देते तो हम बहुतकुछ प्रचार कर सकते थे, जिससे तमाम अजैन बंगला मासिकपत्रों में जैनधर्मकी चर्चा छपने लगती, अनेक बंगालीविद्वान् जैनधर्मकी आलोचना में लग जाते, भाषाग्रंथ कुछ जैनियोंमें विक जानेसे आगेको या सनातन जैनग्रंथमाला को भी सहायता मिलजाना संभव था परंतु आप महाशयोंके विचार वैचित्र्यसे इस विशेष उपकारीकार्य में भी सहायता नहि मिली और हम कुछ भी न कर पाये । श्वेतांबरीभाई इस विषय में बहुतही आगे बढ़ गये हैं कई संस्थायें धाराप्रवाह ग्रंथ छाप कर विनामूल्य वा लागतके मूल्य से भी कम मूल्यपर बड़े २ ग्रंथ वितरण कर रहे हैं दो संस्थायें तौ सूरत और अहमदा बादमें लाख २ रुपयोंकी पूंजी खुली हुई हैं परंतु हमारे यहां ऐसी एक भी संस्था नहीं है । बरसोंसे इटावेकी जैनतस्त्रप्रकाशिनीसभा इस कामकेलिये खुली हुई है जिसके ट्रेक्ट प्रचारादि कार्य से समाज भर खुश है परंतु अभी तक किसी भी दानवीर ने कोई बड़ी सहायता उस संस्थाको नहीं दी और न थोडी बहुत सहायता इस संस्थाको ही दी यह कितने भारी खेद और लज्जाका स्थान है ?
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बडे आश्चर्य की बात तो यह है कि- श्वेतांबरीभाई तौ सैकड़ों
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