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बद्रीप्रसादजी महावीरप्रसादजी वकील बिजनौर निवासी हैं। इन्होंने भी १००) रुपये देकर दानीग्राहक बनना स्वीकार किया- तीसरे म हाशय शोलापुर निवासी शेठ हीराचंद अमीचंदजी शाह हैं जिन्होंने २४ ग्राहक और हो जांय तौ २५ वाँ मुझे समझना ऐसा लिखा । चौथे महाशय बमराना वा ललितपुर निवासी सेठ लक्ष्मीचंदजी साब हैं जिन्होंने लिखा कि १००) रुपयोंका दानी ग्राहक तौ मैं नहि बनता किंतु ८) रुपयोंका ग्राहक बनता हूं। जब धनाढ्य महासयों की ऐसी धर्मप्रीति वा जिनवाणी जीर्णोद्धार में अत्यंत प्रीति देखी गई तब एकदम हताश होना पडा, दो दिन दोरात इसी विचार में मग्न रहा कि अब क्या करना चाहिये ? तब स्मरणआनेपर पद्मनंदिपचीसी आदि शास्त्रों के प्रकाशक दानवीर श्रेष्ठिवर्य नेमिचंद बहालचंदजी वकीलकी सेवा में वही प्रार्थनापत्र भेजकर एकांत प्रार्थना की गई कि - " कमसे कम यदि दो हजार की द्रव्यंसहायता मिल जाय तौ हम १२ महीने तक इसी सहायतापर ही १२ अंक निकाल देंगे- तब अनेक धनाढ्यमहाशय हमारे परिश्रमपर खयालकर के सहायता देने लग जायेंगे अगर किसी ने नहीं भी दी तौ तबतक हम इस्तहारों और अपीलोंसे आठ २ रुपये देनेवाले कमसे कम २०० ग्राहक और सौ सौ रुपया के ८१० दानीग्राहक बना लेंगे और आगेंकेलिय काम चल जायगा । इस प्रकारका प्रार्थनापत्र भेजनेपर हर्ष है कि उक्तमहाशयने तत्काल ही दोहजार रुपये देने की स्वीकारताका पत्र भेजकर हमारे उत्साह को कार्य में परिणत करा दिया। उस पत्रकी अक्षरश: नकल भी हम यहाँ देदेना उचित समझते हैं - यथा
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ता० २ जुलै सन् १९१२ ईसवी
" बाद जयजिनेंद्रके विशेष आपका पत्र नंबर ९०३ मु० २१ - ६- १२का पोहंचा० इसमें शंका नहीं के जिनवाणीके उद्धारार्थ आप बहोत प्रयत्न करते हैं आपके पत्रसे यह मालूम डुबाके दो हजार
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