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________________ परिश्रमके अतिरिक्त द्रव्यकी बड़ी भारी आवश्यकता दीखने लगी। सनातनजैनग्रंथमालाका १० फारमका एक अंक छपाकर तैयार करनेका हिसाब लगाया गया तो मालूम हुवा कि कमसे कम ८) रु० फारम तो उत्तम छपाईका और ८) ही रुपये ५० पौंडके कागजका ५) या ६) रुपये प्रत्येक फारमका संपादकीय व्यय (लिखाई सुधाई वगेरह ) इस प्रकार २१) २२) रुपया एक फारमके अंदाज खर्च होनेसे १० फारमके अंककी छपाई मयटाइटलपेजके अनुमान २३०) रुपये खर्च पड़ेंगे इसके सिवाय एक मकान या गुदाम चाहिये एक सिपाही प्रूफ पहुंचानेवाला डाँक लेजानेवाला तथा मकानकी सफाई, तेलबत्ती, इस्तहार, बारदाना, चिट्ठीलिफाफा, पुस्तकें रखने वगेरहको फर्नीचर बनवाने वगेरहके अनेक खर्च सूझने लगे। करीब करीब तीनसौ रुपये महीने के खर्चसे कम खर्च नहीं पड़ेगा, ऐसा निश्चय होनेपर हमारे विचार फिर उडने लगे तब खर्च कम करनका विचार किया गया तो छपाई कम देन, कागज पतले घटिया लगाने, सुधाई कम देनेका खच तो किसी प्रकार भी कम नहीं करसके। तब फुटकर खर्चकी कमी करनेका प्रयत्न किया गया जब उसमें भी कमी नहिं हो सकी तब श्रीयुत पंडित लालारामजीके स्याद्वादरत्नाकरकार्यालयका बड़ा भारी सहारा मिल गया, अर्थात् मकानभाड़ा, तेलबत्ती, कागज सुतली. आदगी, फर्नीचर वगेरह कछ भी जदे नहिं करना इसीम सब चलाते रहना, जब आमदनी हो, स्टाक बढ़जाय ता, मकान आदिके भाडेकी फिकर करना, तब ऐसा ही हुवा ७ हम पहला मका भाड़ मारहका प्राय कुल खर्च १२ महीने तक स्थाद्वादर जाकरका बालयोस ही बराबर होता रहा । इसप्रकार फुटकर दान का हिसाब विठाकर शेष छपाई वगेरहका कुल खर्च २५०) के अनुमान समझा गया। तदनंतर जब आमदनीका हिसाब लगाया गया तो ऐसा विचार उत्पन्न हुवा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522802
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size9 MB
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