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जैनहितैषी
उदासीन-आश्रम ।
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त्राश्रम, श्राविकाश्रम, अनाथाश्रमके बाद जैनसमाजका ध्यान अब उदासीनाश्रमोंकी ओर भी गया है।
इस वर्ष दो उदासीनाश्रम स्थापित हुए हैं-एक तक्कू- गंज इन्दौरमें और दूसरा कुण्डलपुर ( दमोह ) में । __ बहुत लोग मखौल करते हैं कि जैनसमाज गृहस्थाश्रमकी उन्नतिके जितने उपाय हैं उन सबको कर चुका है-विद्यालय, छात्राश्रम आदि सब कुछ स्थापन कर चुका है और कोई करने लायक काम उसकी दृष्टिमें शेष रहा नहीं हैं, इसलिए अब उसने उदासीनाश्रम स्थापित करनेकी ठानी है । इसमें वे लोग रहेंगे जो इन सब उन्नतिके कामोंसे उदासीन हो चुके हैं । परन्तु हमारी समझमें केवल — उदासीन ' इस नामसे ही इस तरहके अनुमान लगाकर मखौल करना ठीक नहीं है । वास्तवमें देखा जाय तो अब जैनसमाजका काम उदासीनाश्रमोंके स्थापित किये बिना चल ही नहीं सकता-उदासीनोंकी उसे बड़ीभारी जरूरत है। क्योंकि जिस परिमाणसे उसकी सार्वजनिक संस्थायें खुलती जाती हैं उस परिमाणसे उसमें काम करनेवाले नहीं बढते हैं। जिस संस्थाको देखिए उसीमें यह त्रुटि बतलाई जाती है कि अच्छे काम करनेवानेवाले आदमी नहीं हैं और सुयोग्य कार्यकर्ताओंके बिना रुपया खर्च होते हैं तो भी संस्थाओंकी दशा अच्छी नहीं ।
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