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जैमाहितैषी
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तथा उनके शिष्यों द्वारा निर्मित हुआ है--बहुत ही गिरा हुआ उथला और गुणहीन है । इस बातका उल्लेख हम और भी कई बार कर चुके हैं और ऐसे कुछ ग्रन्थोंकी समालोचना प्रकाशित करनेका उद्योग भी कर रहे हैं। हर्षका विषय है कि इस ओर हमारे एक सहयोगीका भी ध्यान आकर्षित हुआ है । जैनहितेच्छुके ९-१० अंकमें सूरतके - दिगम्बरजैन आफिस' से प्रकाशित हुए ' श्रीपालचरित्र' की २०-२१ पृष्ठकी विस्तृत समालोचना प्रकाशित हुई है। हम सिफारिश करते हैं कि जो सज्जन गुजराती भाषा समझ सकते हों उन्हें उक्त समालोचना अवश्य पढ़ना चाहिए और देखना चाहिए कि जो ग्रन्थ हमारे समाजमें अधिकतासे प्रचलित हैं और धार्मिक भावोंकी जागृति करनेवाले बतलाये जाते हैं उनका साहित्य किस श्रेणीका है और उनसे लोगोंको कैसी शिक्षायें मिलती हैं। समालोचनाके प्रत्येक अंशसे हम सहमत नहीं हैं तो भी हम उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकते-वह बहुत अच्छे ढंगसे लिखी गई है। जरूरत है कि इस प्रकारकी समालोचनायें और भी प्रकाशित की जायँ और उनके द्वारा निम्न साहित्यको नीचे गिराकर प्राचीन उत्कृष्ट साहित्यका गौरव और आदर बढ़ाया जावे।
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. २ रामायणके बन्दर कौन थे ? बाल्मीकि रामायणमें रामचन्द्रकी सेनाके हनुमान, जांबवन्त, सुग्रीव आदिको बन्दर, रीछ आदि बतलाया है। सनातनधर्मी भाइयोंका
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