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________________ विविध प्रसंग। साथ महीनों रह करके मैंने इनकी योग्यताका पता लगाया है । समितिका विद्यार्थी अँगरेजी तो चौथी कक्षातक पढ़ा है-तीसरी अँगरेजीमें तो वह सरकारी स्कूलमें भरती ही हो गया है। संस्कृतमें उसकी इतनी योग्यता है कि हितोपदेश आदिकी सरल संस्कृत सुगमतासे समझ लेता है । धर्मविषयमें वह रत्नकरंडश्रावकाचार, द्रव्यसंग्रह आदि पुस्तकें पढ़ा है । इसके सिवाय जैनधर्मकी स्थूल बातोंका उसे अच्छा ज्ञान है, उसकी धर्मविषयक शंकायें सुनने योग्य होती हैं। हिन्दीकी उसकी इतनी अच्छी योग्यता है कि उसने बीसों अच्छी अच्छी पुस्तकें पढ़ डाली हैं, सरस्वती आदि उच्च श्रेणीके पत्रोंको पढ़नेका उसे बड़ा शोक है, छोटी छोटी तुकबन्दियाँ कर लेता है और निबन्ध लिख लेता है । भूगोल, इतिहास, सायन्स आदिका भी उसे ज्ञान है। उसे फुटबाल क्रिकेट आदि खेल खेलना आता है और शुद्ध सभ्य वार्तालाप करना आता है। यद्यपि उसका नैतिक चरित बहुत अच्छा है तथापि उसमें चापल्य बहुत है । जैनसमाजमें क्या हो रहा है, देशमें किन बातोंका आन्दोलन जारी है, इसका भी उसे ज्ञान है । मैं इस लड़केकी योग्यतासे इतना सन्तुष्ट हुआ हूँ कि यदि आज समितिका अस्तित्व होता, तो मैं उसमें अपने यहाँके दशबीस लड़कोंको भरती कराये बिना न रहता-उनके निर्वाहके लिए मैं घरघर भखि माँगकर भी रुपये संग्रह कर देता । दूसरा लड़का व्याकरणमें लघुकौमुदी पलिंग पर्यन्त पढ़ा है और साहित्यमें हितोपदेशके : १० पृष्ठ पढ़ा है । मैंने कई श्लोकोंका अर्थ पूछा; परन्तु वह अच्छी तरह न बता सका। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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