SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनाहितैषी भी यदि हम तैयार न होंगे तो बस समझ लीजिए कि आगे शायद ही कोई भूल चूककर इस मार्ग पर पैर रक्खे । हमारे जातीय जीवन में कितना चैतन्य है-कितना सत्त्व है, इस बातकी परीक्षा इस सेठी जीके मामलेसे ही होनेवाली है। इसका सम्बन्ध केवल सेठीजीरे नहीं है-यह सारे समाजके जीवनका प्रश्न है।। ___ जो संकट आज सेठीजी पर है, यदि इसी प्रकारका संकट किसी मुसलमान, आर्यसमाज, सिक्ख या ईसाई पर आता तो क्या आप विश्वास करते हैं कि उक्त समाजोंमें आपहीके जैसी शान्ति और अलसता छाई रहती ? नहीं, उनमें सेंकड़ों पुरुष तैयार हो जाते और तब शान्त न होते जब तक अपने निरपराधी भाईको संकटमेंसे न छुड़ा लेते । इसका कारण क्या है ? यही कि उनमें जीवनी शक्ति है, कर्तव्यज्ञान है और सामाजिक वात्सल्य है। वे जानते हैं कि अपने समाजके एक व्यक्तिकी रक्षा करना सारे समाजकी रक्षा करना है। जो समाज अपने व्यक्तियोंकी रक्षा नहीं कर सकता वह अपनी भी रक्षा करनेमें असमर्थ होता है; वह चाहे जिसके पैरोंसे रोंधा जा सकता है। हमारे भाइयोंको भी अपने इन पड़ोसियोंसे सबक लेना चाहिए और संसारको बतला देना चाहिए कि हम भी एक जीवित जातिके अंग हैं। __ अब प्रश्न यह है कि सेठीनीकी सहायताके लिए क्या प्रयत्न करना चाहिए । हमारी समझमें केवल स्थानस्थानसे तार अर्जियाँ दिलानेसे और इधर उधर सभायें करके प्रस्ताव पास कर लेनेसे लाभ नहीं होगा। इनसे लाभ होना होता तो अब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy