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सेठीजी और जैनसमाज |
करना मनुष्य मात्रका कर्तव्य है । फिर जैनसमाजका तो यह बाना ही है- कि दुखियोंका दुःख दूर करना और निर्बलोंको अत्याचार से बचाना ।
इसके सिवाय सेठीजी जैनधर्मके अनुयायी हैं, जैनसमाजके एकान्त हितैषी हैं । उसकी सेवाके लिए तो उन्होंने अपना जीवन दे डाला है । ऐसे पुरुषकी भी यदि जैनसमाज इस समय सहायता न करेगा तो उसका दयाधर्मका - परसेवाका बाना कहाँ रहेगा ? यदि एक परोपकारी सधर्मी भाईकी — जैनीकी भी सहायता न हुई तो उसका वात्सल्य अंग कहाँ रहेगा ?
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एक और दृष्टिसे भी जैनसमाजको सेठीजीकी सहायता करना अपना परम कर्तव्य समझना चाहिए । इस समय जैनसमाजकी उन्नति के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि सौ पचास स्वार्थत्यागी कर्मवीर पुरुष तैयार होवें और वे समाजकी सेवा के लिए अपनी जीवन अर्पण कर देवें । परन्तु क्या जैनसमाज यह समझता है कि सेठीजी जैसे पुरुषोंकी ऐसी निःसहाय अवस्था देखकर भी आगे कोई पुरुष समाजसेवक बननेको उत्साहित और उत्सुक हो सकेगा ? सेठीजी सबसे पहले पुरुष हैं जिन्होंने उच्च श्रेणीकी विद्या प्राप्त करके और धर्मशास्त्रोंका गहरा अध्ययन करके अपनी जाति और धर्मकी सेवाके लिए जीवन अर्पण कर दिया है । इस पुरुष रत्नने आज सात आठ वर्ष से अपना तन-मन-धन सब कुछ लगाकर जिस उत्साहसे सेवा की है वह जैनोंके इस युगके इतिहासमें अपूर्व है । ऐसे पुरुषको इतने बड़े संकट से बचाने के लिए
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