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________________ सेठीजी और जैनसमाज। दर्शन हो गये । इस प्रकारकी घटनायें अब हमारे लिए बहुत परिचित होती जाती हैं, इसलिए हमें इनसे कोई आश्चर्य या खेद नहीं होता है; तथापि यह जानकर हमें बहुत दुःख हुआ कि एक धनी महाशयने एक जरासी बात पर-बिना समझे ही एक वयोवृद्ध समाजसेवकका-नहीं, उसकी जातिभरका अपमान कर डाला । अवश्य ही उक्त सज्जनको इसका कुछ खेद नहीं हुआ है-वे अपने जीवनमें ऐसी बहुत सी घटनाओंका सामना कर चुके हैं; तथापि धनिक महाशयको-जो कि जैनसमाजके एक अगुएके रिक्त स्थानको भर देना चाहते हैं-बहुत सोच समझकर-परिणामका ख़याल रखकर अपने वचन निकालना चाहिए । बड़ोंका बड़प्पन इसीमें है। सेठीजी और जैनसमाज। . युत बाबू अर्जुनलालजी सेठी आज १० महीM नेसे जिस विपत्तिमें पड़े हैं उसका संवाद सर्व श्रुत हो चुका है । यह भी सबको मालूम है A कि अभीतक उन पर कोई भी अपराध नहीं लगाया गया है । जिस सन्देहमें वे पकड़े गये हैं वह अभी तक सन्देह ही सन्देह है । सरकारकी शक्तिशालिनी और विचक्षण दृष्टि भी अभी तक उस सन्देहको सत्यके रूपमें परिणत नहीं कर सकी है । यदि उसे एक भी प्रमाण उनके अपराधी हो Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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