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मालवा - प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन |
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मिलता है | जहाँ आपने युवकोंको उद्धतता छोड़ने और धैर्यसे काम करने तथा अपने पक्ष पर स्थिर रहनेका उपदेश दिया है वहाँ बूढ़ोंको यह भी समझाया है कि वे नई पीढ़ीकी विचारप्रगतिके बाधक न बनें और विना प्रजाके राजा और विना अनुया - यियोंके मुखिया बननेका मौका न आने देवें । बीचमें और भी अनेक विषयोंकी चर्चा करके बाबूसाहबने अन्तमें कहा है कि “हमें सदा इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि हम हिन्दू जातिके एक अंग हैं और हमें कदापि उससे पृथक् होनेकी चेष्टा न करनी चाहिए । हमको कभी न भूलना चाहिए कि हम केवल जैन ही नहीं हैं हम हिन्दू भी हैं । हम हिन्दुस्थानके निवासी हैं, अतएव इस देशकी भक्ति तथा सेवा करना हमारा धर्म है ।" हम आशा "करते हैं कि जैनसमाजके नेता बाबूसाहबके इन वाक्यों पर ध्यान रक्खेंगे और देश के सार्वजनिक कार्योंमें उसी तरह योग देंगे जिस तरह और लोग देते हैं । हमें अपने इस कर्तव्यको और इस अधिकारको कभी न भुला देना चाहिए । अभी तक हमारे प्रयत्न प्रायः अपने हिन्दू भाइयों से जुदा रहनेकी ओर ही हो रहे हैं ।
प्रस्ताव ।
सभाके जल्सोंमें सब मिलाकर २१ प्रस्ताव पास हुए। उनमें - से कई प्रस्ताव महत्त्व हुए । १ पोरवाड़ जातिकी जो दो तीन शाखायें हैं वे मिला दी जावें और उनमें परस्पर सम्बन्ध होने लगें । २ सिद्धवरकूटके आसपासके स्थानोंकी ऐतिहासिक खोज की जाय।
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