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मालवा-प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन।
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प्रदान न करे । इसी कारण साधारण लौकिक शिक्षाके विषयमें सरकारी शिक्षापद्धतिके विरुद्ध एक स्वतंत्र पद्धति स्थापित कर पृथक् पाठशालाएँ कायम करनेकी जैनसमाजके लिए आवश्यकता नहीं । ऐसा करनेसे कुछ लाभ नहीं होगा। गवर्नमेंटकी शिक्षाप्रणालीमें जो त्रुटियाँ हैं, केवल उन्हींकी पूर्तिके लिए हमें खास उद्योग करना चाहिए । अर्थात् हमें अपने बालकोंको साधारण शिक्षा तो सरकारी पाठशालाओंमें दिलाना चाहिए और धार्मिक शिक्षाके लिए हमें स्वतंत्र प्रबन्ध कर लेना चाहिए ।" इसमें सन्देह नहीं कि ये विचार बहुत कम लोगोंको पसन्द आवेंगे; परन्तु इनमें सत्यताका अंश बहुत है । जिन शहरोंमें सरकारी स्कूल हैं वहाँ एक स्वतंत्र पाठशाला स्थापित करना उस दशामें अच्छा हो सकता है जब उसका प्रबन्ध और उसकी शिक्षापद्धति सरकारी स्कूलोंसे अच्छी हो । नहीं तो स्वतंत्र पाठशालासे उलटी यह हानि होगी कि जो विद्यार्थी सरकारी स्कूलोंमें पढ़कर अच्छी योग्यता सम्पादन कर लेते, वे हमारी अस्तव्यस्त पाठशालामें पढ़कर मूर्ख रह जायेंगे । उन्हें छहढाला, मंगल, सूत्र, भक्तामर तो आवश्य आ जावेंगे; परन्तु और कुछ नहीं आवेगा। ऐसे स्थानोंमें दिनकी स्वतंत्र पाठशालायें न खोलकर दो घंटेके लिए रातकी पाठशालायें खोली जावें और उनमें जैनधर्मकी शिक्षा दी जावे तो बहुत लाभ हो । हम इस वातको नहीं मानते कि जैनसमाजको अपनी स्वतंत्र शिक्षा-संस्थायें खोलना ही न चाहिए अथवा कोई दूसरी स्वतंत्र शिक्षापद्धति जारी न करना चाहिए । इसकी हम बहुत आवश्यकता समझते हैं-अन्य
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