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________________ मालवा-प्रान्तिक सभाका वार्षिक अधिवेशन। ७३ एक स्त्रीने मन्दिरप्रतिष्ठादिके प्रचलित पुण्य कार्योंको छोड़कर सार्वजनिक सेवा करनेवाली सभाके लिए इतनी उदाहरण दिखलाई हो । इससे जान पड़ता है कि हमारे स्त्रीसमूहकी भी रुचि सभासुसाइटियोंकी ओर होती जाती है। ये अच्छे लक्षण हैं । स्वागतकारणी सभाने अधिवेशनका प्रबन्ध प्रशंसनीय पद्धतिसे किया था। इस काममें लगभग पाँच हजार रुपये खर्च हो गये। सभापतिका आसन धूलियानिवासी सेठ गुलाबचन्दजीको दिया गया था । सभापतिका व्याख्यान। आपका व्याख्यान, समायानुकूल और बहुत कुछ उदार विचा'रोंसें पूर्ण हुआ है। जैनग्रन्थोंको छपाकर प्रकाशित करना, जैनोंकी समस्त जातियोंमें रोटीबेटीव्यवहार होना, आदि ऐसे विषयोंका भी आपने प्रतिपादन किया है जिनके विषयमें अब तकके सेठ-सभापतियोंमेसे शायद ही किसीने जबान हिलाई हो । यद्यपि आपने इन बातोंको दवी जबानसे कुछ डरते हुए कहा है; पर कहा अवश्य है । वर्णाश्रम धर्म और राष्ट्रीयताके विषयमें आपने जो कुछ कहा है वह इस विषयकी सर्व बाजुओं पर विचार करके नहीं कहा है । वर्णको गुणकर्मानुरूप न मानकर जन्मसिद्ध माननेसे क्या क्या हानियाँ होती हैं, धर्मदृष्टिसे किसी मनुष्यको नीच अस्पर्य माननेका किसीको अधिकार है या नहीं और गुणकर्मसे नीचत्व उच्चत्व कहाँतक प्राप्त हो सकता है, इन सब बातों पर विचार करके इस प्रश्नकी मीमांसा होनी चाहिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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