________________
७२
जैनहितैषी
- दारोगा साहबका जो प्रेम-मैत्री-विटप अनेक दुखियोंके आँसु
ओंके सेचनसे लहलहा रहा था, वह इस आकस्मिक आँधीसे गिरकर जमीनमें मिल गया !
( रवीन्द्रबाबूकी एक गल्पका अनुवाद । )
मालवा-प्रान्तिक-सभाका वार्षिक
अधिवेशन ।
ग त ७ नवम्बरसे ९ नवम्बरतक दि० जै० मालवा TAN प्रान्तिक सभाका जल्सा खूब धूमधामके साथ
- हो गया । यह अधिवेशन सिद्धक्षेत्र सिद्धवरकूट पर हुआ था । हमारी जितनी प्रान्तिकसभायें हैं उनमें अब दूसरा स्थान मालवासभाको मिलना चाहता है । अभी तक एक बम्बई प्रान्तिकसभा ही ऐसी थी जो एक सभाके रूपमें काम करती थीं; परन्तु अब देखते हैं कि मालवासभा भी उसी मार्ग पर पैर बढ़ाती जाती है । लगभग चार पाँच हजार स्त्री पुरुषोंका जमाव हुआ था । यह जानकर पाठक आश्चर्य करेंगे कि बडवाहकी एक धनिक विधवा बाईके उत्साह और अर्थव्ययसे यह अधिवेशन हुआ था । इस महिलारत्नका नाम श्रीमती बेसरबाई है । जैनसमाजमें शायद यह पहला उदाहरण है जिसमें
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org