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जैनहितैषी
इस संस्थाकी दो वर्षकी संक्षिप्त रिपोर्ट हमारे पास आई है जिससे मालूम होता है कि पिछले वर्षके अन्तमें संस्थाके पास १११७२१०)॥ मौजूद रहे। दोनों वर्षमें लगभग ११०० पुस्तकें मुफ्त बाँटी गई। पिछले वर्षमें अर्थात् सं० १९७० विक्रम संस्थाकी ओरसे आठ ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं। इस तरह संस्थाक दशा सब तरहसे संतोषयोग्य जान पड़ती है।
हमारी इस संस्थाके साथ पूर्ण सहानुभूति है और हम चाहते हैं कि जैनसमाजमें इस तरहकी और भी अनेक संस्थायें खुलें क्या ही अच्छा हो यदि हमारे दिगम्बर सम्प्रदायके अनुयायी में एक ऐसी ही संस्था स्थापित करें और उसके द्वारा अपने लुप्तप्रार साहित्यको जनसाधारणकी दृष्टि तक पहुँचानेका श्रेय प्राप्त करें स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्दनीके स्मारकमें जो फण्ड खोल गया है उसकी ओरसे एक संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थमाला निकालनेक निश्चय हुआ है । क्या हमारे भाई इसी फण्डको बढाकर कमसे कम २५-३० हजारका नहीं कर सकते हैं ?
दुर्बुद्धि। मैं एक कसबेकी सरकारी अस्पतालका डाक्टर हूँ । पुलिसवे थानेके सामने मेरा मकान है । यमराजके साथ मेरी जितनी मित्रता थी दारोगा : साहबके साथ भी उससे कम न थी। जिस तरह मणिसे वलयकी ( कडेकी ) और वलयसे मणिकी शोभा बढ़ती है उसी तरह मेरी मध्यस्थतासे दारोगा साहबकी और दारोगा साहबकी मध्यस्थतासे मेरी आर्थिक श्रीवृद्धि होती थी।
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