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________________ जैनहितैषी - भूल गई है, पर अपनी ऐतिहासिक संस्थाएं वह भक्तिपूर्वक मानती और चलाती चली आई है जिनके कारण बुद्धिबल और सुदिन पाने पर वह अपना इतिहास फिर जान जायगी । हिन्दुओं के त्योहार उस के सुदिन के अनश्वर बीज हैं । अवसर और देशकाल का मेह पाउन त्योहारों और रस्मों से अभ्युदय पनप पड़ेगा । ५८ 'जिन' नाटपुत्र का मृत्युदिन उनके जन्म दिन से भी बड़े उत्सव का दिन था, क्योंकि उस दिन उन्हों ने अपना मोक्ष माना । उनका मोक्ष कार्त्तिक की अमावस्या को हुआ । पावा कसबे में वहां के ज़मींदार के दफ्तर में उनका निर्वाण हुआ । उनका मोक्ष मनाने को पावापुरी ने ' दीपावली ' की । तब हीसे आज एक पावापुरी नहीं आर्यावर्त्त की सारी पुरियां - कार्त्तिक की अमावस्या को दीपावली का उत्सव मनाने लगीं और वह कितनी ही शताब्दियों से जातीय महोत्सव हो गया है । पि ज्ञान का रूप है। ज्ञानी और ज्ञानदाता नाटपुत्र महावीर के स्मरणार्थ इस से उपयुक्त महोत्सव क्या हो सकता है? प्राकृत जैन कल्पसूत्र ( १२३ से आगे ) में महावीर के जीवनचरित में पावा में उनके मरण का जहां विवरण दिया है वहीं निर्वाण के उत्सव में दिवाली करना भी लिखा है । हम लोगों के और किसी प्राचीन ग्रन्थ में दीपावली महोत्सव की उत्पत्तिकथा नहीं लिखी है | हम हिन्दू जैसे अपनी बहुत सी जातीय बातें भूल गए थे, उसी तरह इस महोत्सव का मूल भी भूल गए थे । जैसे बुद्ध भगवान् के मंदिर में हम नहीं जाते, उसी तरह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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