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________________ जैनहितैषी - (७) खुली हुई आँखें क्या तब तक तुमको देख न पायेंगीजगकी धूल छान कर जब तक बन्द नहीं हो जावेगी ॥ किन्तु हाय ! ये ऐसा अवसर आप कहाँसे पावेंगी ? सींच सींच कर बस आशाके अंकुर ही उपजावेंगी ॥ ( ८ ) ४४ अनन्तगुणमय ! क्या ऐसे अकरुण तुम हो जाओगे - सब कुछ दिखलाकर आँखोंको अपनेको न दिखाओगे ? नहीं नहीं, ऐसा न करोगे, तुम इनको अपनाओगे, दिव्य-दीप्ति - परिपूर्ण स्वयं ही सहसा सम्मुख आओगे ॥ मैथिलीशरण गुप्त | महावीर स्वामीका निर्वाणसमय । अ ब तक सभी लोगोंने इस बातको मान लिया था कि महावीर स्वामीका निर्वाण ईस्वी सनसे १२७ वर्ष पूर्व हुआ; परन्तु अभी हालमें जाल चारपेंटियर नामक एक पाश्चात्य विद्वान् ने इस विषयका एक विस्तृत लेख ' इंडियन एंटिक्वेरी ' क जून, जुलाई और अगस्तके अंकोंमें प्रकाशित कराया है । इस लेखमें उन्होंने यह सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है कि महावीर स्वामीका निर्वाण ईस्वी सन्से ४६७ वर्ष पूर्व हुआ है । अर्थात् इस समय हम जो वीरनिर्वाणसंवत् मान रहे हैं उसमें ६० वर्षका अन्तर है -२४४१ के स्थान में २३८१ चाहिए । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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