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प्राचीन मैसूरकी एक झलक ।
कुछ जैनलेखोंसे गंगवंशीय राजाओंके समयका पता लगता है। चंद्रनाथ वस्तीके एक लेखसे मालूम हुआ है कि उसकी प्रतिमा बालचंद्र-सिद्धांत-भट्टारके शिष्य के....लभद्र-गोरवने विराजमान कराई थी। यह कदाचित् सन् ९५० की बात है । एक जैनलेखसे पता लगा है कि देवियब्बे कांति नामक स्त्री पाँच दिन तपस्या करके स्वर्गको चली गई । एक लेग्वमें चमकब्बे नामक स्त्रीकी मृत्य लिखी है । वह उदिग-मेट्टी और डेवरदामय्यकी माता थी । वह कुंदकुंदाचार्यकी अनुयायिनी थी। एक और लेखमें महेन्द्रकीर्ति नामक जैनमुनिका अष्टकर्म क्षय करके स्वर्गवास (?) लिखा है। इन लेखोंका समय इशवीं शताब्दि मालूम होता है । श्रवणवेलगुलके यात्रियोंके लेख मनोरजनमे खाली नहीं हैं । जैसा पहले लिखा जा चुका है ये लेख नौवीं और दशवीं शताब्दियों में श्रवणबेलगुलकी प्रतिष्ठाको प्रगट करते हैं। इनमें से कुछ लेख आठवीं शताब्दिके हैं। कुछ लेखोंमें तो केवल यात्रियों के नाम ही दिये हैं और कुछमें उनका परिचय भी दिया है। पहले प्रकारके लेखोंके उदाहरण लीजिए । गंगरवंठ ( गंगवंशीय योद्धा ). बदवरनंठ ( निर्धनोंका मित्र ), श्रीनागती आलदम ( नागतीका शासक ), श्रीराजन चट्ट (राजाका व्यापारी)। दूसरे प्रकारके लेखोंके उदाहरण श्रीएचय्य, शत्रुओंके लिये कठोर; श्रीईशरय्य. दूसरोंकी स्त्रियाका ज्येष्ठः श्रीमदरिष्टनेमि पंडित, प्रतिद्वंदी मतोंका नाशक; श्री नागवर्म.........सूर्य । और भी बहुतसे नाम दिये हैं. जिनमें विशेष रविचन्द्रदेव. श्रीकविरत्न, श्रीनागवर्म, श्रीवत्सराज बालादित्य, श्रीपुलिक्कय्य, श्रीचामुण्डय्य, मारसिंगय्य,
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