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________________ ११२ जैनहितैषी अपने दृष्टान्तसे स्पष्टकर देनेके लिए भगवानने पहले दान किया, फिर संयम अंगीकार किया और संयमकी ओर लौ लग गई थी तो भी गुरुजनोंकी आज्ञा जबतक न मिली तब तक बाह्य त्याग नहीं लिया । वर्तमान जैनसमाज इस पद्धतिका अनुकरण करे तो बहुत लाभ हो। ३० वर्षकी उम्नमें भगवानने जगदुद्धारकी दीक्षा ली और अपने हाथसे केशलोच किया । अपने हाथोंसे अपने बाल उखाड़नेकी क्रिया आत्माभिमुखी दृष्टिकी एक कसौटी है । प्रसिद्ध उपन्यास लेखिका मेरी कोरेलीके 'टेम्पोरल पावर' नामक रसिकग्रंथमें जुल्मी राजाको सुधारनेके लिए स्थापित की हुई एक गुप्तमण्डलीका एक नियम यह बतलाया गया है कि मण्डलीका सदस्य एक गुप्त स्थानमें जाकर अपने हाथ की नसमेंसे तलवारके द्वारा खून निकालता था और फिर उस खूनसे वह एक प्रतिज्ञापत्रमें हस्ताक्षर करता था ! जो मनुष्य जरासा खून गिरानेमें डरता हो वह देशरक्षाके महान कार्यके लिए अपना शरीर अर्पण कदापि नहीं कर सकता । इसी तरह जो पुरुष विश्वोद्धारके 'मिशन'में योग देना चाहता हो उसे आत्म और शरीरका भिन्नत्व इतनी स्पष्टताके साथ अनुभव करना चाहिए कि बाल उखाड़ते समय ज़रा भी कष्ट न हो। जब तक मनोबलका इतना विकास न हो जाय तब तक दीक्षा लेनेसे जगत्का शायद ही कुछ उपकार हो सके। महावीर भगवान् पहले १२ वर्ष तक तप और ध्यानहीमें निमग्न रहे। उनके किये हुए तप उनके आत्मबलका परिचय देते हैं । यह एक विचारणीय बात है कि उन्होंने तप और ध्यानके द्वारा विशेष योग्यता प्राप्त करनेके बाद ही उपदेशका कार्य हाथमें लिया। जो लोग केवल 'सेवा करो,-सेवा करो'की पुकार मचाते हैं उनसे जगतका कल्याण नहीं हो सकता । सेवाका रहस्य क्या है, सेवा कैसे करना चाहिए, जगतके कौन कौन कामोंमें सहायताकी आवश्यकता है. थोडे समय और थोड़े परिश्रमसे अधिकसेवा कैसे हो सकती है, इन सब बातोंका जिन्होंने ज्ञान प्राप्त नहीं किया-अभ्यास नहीं किया, वे लोग संभव है कि लाभके बदले हानि करनेवाले हो जाय। 'पहले ज्ञान और शक्ति प्राप्त करो, पीछे सेवाके लिए तत्पर होओ' तथा 'पहले योग्यता और पीछे सार्वजनिक कार्य' ये अमूल्य सिद्धान्त भगवानके चरितसे प्राप्त होते हैं । इन्हें प्रत्येक पुरुषको सीखना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522801
Book TitleJain Hiteshi 1914 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1914
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size12 MB
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