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सहयोगियोंके विचार ।
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सहयोगियोंके विचार ।
न ये वर्षके इस अंकसे उक्त स्तंभ शुरू किया जाता है।
इसमें जैन और जैनेतर सामयिक पत्रोंमें प्रकाशित हुए - लेख, लेखांश, उनके अनुवाद या संक्षिप्त सार प्रका
ANESSINशित किये जावेंगे। जैनहितैषीके पाठकोंको यह ज्ञान होता रहे कि दूसरे पत्रोंमें इस समय किस प्रकारके विचार प्रकट हो रहे हैं, उनमें किस ढंगका साहित्य प्रकाशित हो रहा है और जैनधर्मके विषयमें कहाँ कहाँ क्या . चर्चा हो रही है, इसी अभिप्रायसे यह स्तंभ प्रारंभ किया गया है । जहाँ तक होगा, इसमें वे ही लेख प्रकाशित किये जायँगे जो बहुत महत्त्वके होंगे अथवा जिनकी ओर जैनसमाजकी दृष्टि विशेषरूपसे आकर्षित करनेकी आवश्यकता होगी। इससे एक बड़ा भारी लाभ यह भी होगा कि जो भाई दूसरे पत्र नहीं पढ़ते हैं उनको एक जैनहितैषीके पढ़नेसे ही जैनसंसारकी प्रायः सब ही जाननेयोग्य बातोंका ज्ञान होता रहेगा। परन्तु पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि इस स्तंभके लेखोंका किसी भी प्रकारका उत्तरदायित्व हम पर न रहेगा। लेखोंका परिचय करा देना भर हमारा काम है, उनकी और सब जिम्मेवारियाँ उनके लेखकों पर हैं। आशा है कि हमारा यह नया प्रयत्न पाठकोंको पसन्द आयगा और वे इस स्तंभसे बहुत लाभ उठावेंगे । उच्चश्रेणीके अँगरेज़ी बंगला आदिके मासिक पत्र इस स्तंभके द्वारा अपने पाठकोंकी ज्ञानवृद्धिमें बहुत बड़ी सहायता पहुँचाते हैं। -सम्पादक ।
प्रार्थना। हे सर्वज्ञ, आप हमें सम्यग्ज्ञानकी भीख दीजिए, जिसके द्वारा हम अपने पवित्र धर्मप्रचारके लिए यत्न करें-उसके निर्दोष तत्त्वोंका संसारमें प्रचार करें। हमारे देश और जातिको अज्ञानरूपी बादलोंकी घनघोर काली घटाओंने ढक रक्खा है उन्हें नष्टकर ज्ञानका उज्ज्वल प्रकाश हो । उस सुन्दर प्रकाशसे देश और जातिका कष्ट दूर हो, उनकी आर्थिक, नैतिक दशा सुधरे, परस्परमें प्रेमतत्त्वका प्रसार हो
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