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२-" दानकार्य अच्छा है, चाहे उससे स्वर्ग न भी मिले ।" ३-" बाँसुरी मीठी है, वीणा मधुर है, यह उक्ति उनकी है
जिन्होंने अपने बच्चोंकी तोतली. बोली नहीं सुनी।" ४-" जो बेथके मेहनत करते हैं वे अदृष्टको भी जीत लेते हैं।" ५-" एक जीवकी हत्या बचाना, हजार बार घी जलाने ( यज्ञ)
से उत्तम है।" ६-" सबेरे बुराई करो, शामको उसका फल चखो।" ७-“ विद्या किस कामकी, यदि विद्वान् सर्वज्ञकी पूजा न करें।"
कुरलकाव्यका तामिल-भूमिमें इतना आदर है कि उसे कोई बिना स्नान किये नहीं छूता । उसके पाठको ब्राह्मण और ब्राह्मणेतर सभी गीताके पाठके समान पुनीत मानते हैं। इस काव्यकी पूजा तक की जाती है । तामिलोंको कुरल काव्यका घमण्ड है; कुरलका नाम लीजिए कि वे उसका गुणगान करने लगते हैं । कुरलका अँगरेजी अनुवाद डाक्टर पोपने आक्सफर्ड यूनीवर्सिटी प्रेसमें छपाया है ।
लेखके अन्तमें पाटलिपुत्रके सुयोग्य सम्पादक महाशयने लिखा है"खेद है कि अरबके कुरानका हिन्दी भाषान्तर तो हो और दक्षिणापथके कुरलके नामसे भी हिन्दीभाषी अपरिचित रहें।" इस उक्तिका हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इसलिए हमने इस महाकाव्यके हिन्दी अनुवादको प्रकाशित करनेका दृढ निश्चय किया है । देखें, हमारी यह इच्छा कब पूर्ण होती है और हिन्दीभाषाभाषी सज्जनोंके हाथोंमें हम इस दो हजार वर्षके पुराने जैन कविकी कृतिको रखने में कब समर्थ होते हैं । यदि कोई धर्मात्मा सजन इस काव्यके प्रकाशित करनेमें कुछ आर्थिक सहायता देंगे, तो वह सहर्ष स्वीकार की जायगी ।
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