SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३५ ५ महावीर भगवानका जीवनचरित और महावीर अंक । अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीरका अबतक कोई ऐसा जीवनचरित प्रकाशित नहीं हुआ है कि जिससे वर्तमानका शिक्षित समुदाय इस बातकी कल्पना कर सके कि संसारके प्रसिद्ध प्रसिद्ध धर्मप्रवर्तकोंमें उनका आसन कितना ऊँचा था, उनकी अखण्ड अव्याबाध और उदात्त फिलासोफी कितनी बहुमूल्य और विज्ञानसम्मत थी, उनका चरित्र कितना ऊँचा था, उनके उपदेशोंने अपने समयके जनसमाजपर क्या प्रभाव डाला था, उनके धर्मने देशको क्या लाभ पहुँचाया था और उनके शासनकी प्रगति तथा अवनति किन किन कारणोंसे हुई । महावीर भगवानके समकालीन बुद्धदेवके विषयमें इस समय संसारका शिक्षित समाज जितना अधिक ज्ञान रखता है उतना महावीर भगवानके विषयमें नहीं रखता। इसका कारण यह है कि संसारकी प्रायः प्रत्येक भाषामें बुद्धदेवके सैकड़ों जीवनचरित मौजूद हैं; परन्तु भगवान् महावीरका और तो क्या जैनियोंके घरमें ही कोई ऐसा चरित नहीं है जो इस समयके लोगोंकी जिज्ञासाको पूर्ण कर सके । संसारके एक सर्वोच्च धर्मप्रवर्तक और फिलासफरके विषयमें लोगोंको अज्ञानी रखना हम लोगोंके लिए बड़ी लज्जाकी बात है । हर्षका विषय है कि अब इस ओर लोगोंका ध्यान आकर्षित हुआ है और 'जैनश्वेताम्बर कान्फ्रेंस हेरल्ड' के सम्पादक श्रीयुत मोहनलाल दलीचन्द देसाई बी. ए. एलएल. बी.ने इस विषयमें एक बहुत ही प्रशंसनीय उद्योग किया है उन्होंने उक्त पत्रका एक खास अंक प्रकाशित किया है और उसका नाम " "महावीर अंक' रक्खा है । यह अंक रायल आठपेजी साइजके लगभग -१०० पृष्ठोंका है। इसमें ९ लेख अँगरेजीके और शेष सब लेख Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy