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________________ ६२९ नहीं फटकने देते हैं ! इस जतिकी दुर्दशा पर आर्यसमाजके नेताओंको दया आई है। उन्होंने हर प्रकारके संकट सहन करके इस जातिको ऊपर उठाकर मनुष्योचित स्थान पर बैठानेका उद्योग प्रारंभ कर दिया है । इस उद्योगमें उन्हें बड़े बड़े विघ्नोंका सामना करना पड़ता है। एक हिन्दूने तो इस कामसे चिढकर एक समाजीको हथियारसे घायल तक कर डाला है । हमारी समझमें मनुष्य अपने चरित्रसे और व्यवहारसे ही 'शुद्ध हो सकता है; किसी प्रकारके दिखावटी अनुष्ठानसे नहीं। इसलिए हम समाजकी शुद्धि-प्रथाको अच्छा नहीं समझते हैं। परन्तु किसीतरह हो समाजी भाइयोंने मेघोंको उन्नत करनेका मार्ग खोल दिया है। उस दिन उन्होंने २०० मेघोंको शुद्धिसंस्कार के द्वारा शुद्ध कर डाला और उनके साथ बहुतसे उच्चकुलके समाजियोंने एक साथ भोजन किया ! वे इतना ही करके चुप नहीं हो गये हैं । मेवोंको शिक्षित बनानेके लिए उन्होंने जगह जगह पाठशालायें खोली हैं, और शिल्प शिक्षा देनेके लिए कई शिल्पशालायें स्थापित कर दी हैं। मघोंके कई लड़के गुरुकुल ब्रह्मचर्याश्रममें भरती हो गये हैं और उन्हें उच्चश्रेणीकी शिक्षा मिल रही है। इस नोटको लिखते समय हमें दक्षिणके सादुर लोगोंकी याद आगई. जिनके विषयमें हमने पिछले वर्षके तीसरे अंकमें एक विस्तृत लेख प्रकाशित करके जैनसमाजके नेताओंसे प्रार्थना की थी कि वे सादुर लोगोंके लिए धर्मका द्वार खोल दें। परन्तु उस ओर किसीका भी ध्यान न गया। २० हजार सादुर लोग जैनी बननेके लिए तरस रहे हैं। वे उच्च कुलके हैं, उनके व्यापारादि कार्य उच्च कुलके योग्य हैं, दक्षिणके दूसरे जैनियों में विधवाविवाह जायज है; परन्तु उनमें यह भी नहीं होता है, और इस काममें कोई विघ्न डालनेवाला भी नहीं है। इतने पर भी जरा जरासी बातों के लिए बड़े Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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