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________________ छूट जाती है। मान लो कि एक नवयुवक है । चाहे उसके मातापिता धनवान् हों चाहे निर्धन, इससे कुछ मतलब नहीं । चाहे वह उच्च . जातिका हो, चाहे नीच जातिका, इससे भी कुछ तात्पर्य नहीं । हाँ, इतना ज़रूर है कि वह एक नेक सदाचारी लड़का है । एक दिन वह अपने मित्रोंके साथ सन्ध्याके समय सैर कर रहा है। उसके मित्र भी वैसे ही साधारण स्थितिके सभ्य सदाचारी लड़के हैं, परन्तु प्रायः साधारण लड़कोंके समान वे भी कभी कभी भूल कर बैठते हैं । ऐसा ही उस दिन भी हुआ। उनमेंसे एकने कह दिया कि चलो, आज किसी जगह चलकर साथ साथ खावें । इसमें कुछ भी कठिनाई नहीं हुई; सब हँसते खेलते उस स्थान पर पहुँच गये । वहाँ उनमेंसे एक लड़क बोला कि भाई, कुछ पीनेको भी चाहिए । उसके बिना कुछ आनन्द न आयगा । अब हमारा नवयुवक उस समय इंकार करना सभ्यताके प्रतिकूल और मित्रताके नियमोंके विरुद्ध समझकर हाँमें हाँ मिला देता है । विवेक अंदरसे रोकता है और पुकार कर कहता है कि सावधान हो, देख, क्या करता है ! परन्तु वह इस समय कुछ नहीं सुनता । उसको इस बातका विचार नहीं है कि चरित्रकी दृढता सदा सच्चे मार्ग पर जमे रहनेमें है । वह मित्रोंके साथ उस दिन थोड़ी शराब पी लेता है । यद्यपि वह इस विचारसे नहीं पीता कि उसको शराबसे प्रेम है या वह शराबकी आदत डालना चाहता है, सिर्फ यह खयाल करके पी लेता है कि मित्रोंमें इंकार करना ठीक नहीं है। दैवयोगसे दो चार बार ऐसा ही मौका पड़ जाता है और वह हर बार थोडी थोड़ी पी लेता है। परन्तु इसका परिणाम बहुत ही बुरा होता है। प्रत्येक बार विवेककी रोकटोक कम होती जाती है और धारे धीरे उसे नशेकी चाट पड़ती जाती है । अब तो वह कभी कभी Jain Education International For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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