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________________ नहीं हुई। यदि मेरे पास और रुपया होता तो मैं अवश्य घाटेको पूरा कर लेता और साथमें बहुत कुछ और भी कमा लेता। अब यह विचार बार बार उसके मनमें आता है, और वह सोचता है कि मेरे हाथमें बेंकका जो रुपया है, यदि मैं उसे लगा दूँ, तो इसमें कोई हानि नहीं है। शीघ्र ही जो रुपया कमाऊँगा उसमेंसे दे दूंगा। ऐसी छोटीसी रकमका अदा कर देना कोई कठिन बात नहीं । अन्तमें एक दिन उससे नहीं रहा जाता और वह बेंकके रुपयोंको भी जो उसके अधिकारमें हैं लगा देता है और खो बैठता है। ऐसी घटनायें प्रतिदिन ही देखने और सुननेमें आती हैं । इनका कारण क्या है ? दूसरेके रुपयेको अपने उपयोगमें लानेका वही एक बुरा विचार । यदि कोई बुद्धिमान होता तो मनमें आते ही उस विचारको निकाल देता और अपनी बुरी इच्छाको दबा लेता, परन्तु वह मूर्ख था । उसने उसे स्थान दिया । जितना जितना वह उसे स्थान देगा उतना उतना ही वह विचार बढ़ता जायगा और अन्तमें वह विचार इतना जोरदार हो जायगा कि फिर कार्यरूपमें ही परिणत होता दिखलाई देगा और उसका परिणाम घृणा, अपमान, शोक और पश्चात्ताप होगा। शुरूमें ही जब मनमें कोई विचार उठता है तब उसका हटा देना आसान होता है। बादमें उसका जोर बढ़ता जाता है और उसका हटाना उत्तरोत्तर कठिन होता जाता है। दियासलाई कितनी छोटी चीज़ है। शुरूमें उसके बुझानेके लिए केवल एक फूंक काफ़ी है; परन्तु यदि वह किसी चीजमें लग जाय, तो घरभरमें आग लगा देगी . और फिर उसका बुझाना कठिन हो जायगा । ___एक और उदाहरण लीजिए । इससे यह मालूम होगा कि किस .. तरह किसी चीज़की आदत पड़ जाती है और किस तरह वही आदत Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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