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________________ ५९० भावको जान गया और उत्साहमें आकर उसके हाथको चूमकर बोला" वलभे, मेरी इस ढीठताको क्षमा करना; और जिस तरह यह चुम्बन पहला है उसी तरह-यदि मैं अपनी प्रतिज्ञा पालन करनेमें सफल न होऊँ तो इसे ही अन्तिम समझ लेना। प्रिये, मुझ पर दया करो और अपने कुटुम्बके साथ रखके नटकला सिखलानेकी मेरी प्रार्थना अपने पिता पर प्रकट कर दो। जहाँ तक बने इस बातका भी प्रयत्न करो कि कल यहाँसे अपना डेरा कूच हो जाय जिससे कि मुझे अपने पिताकी ओरकी किसी रुकावटका भय न रहे।" ___ नटसुन्दरीका हृदय नवनीतकोमल हो गया। मस्तक नीचा करनेके सिवाय वह कुछ भी उत्तर न दे सकी । एलाकुमार वहाँसे बिदा हुआ और मार्गप्रतीक्षा करते हुए नटसे जाकर मिला । उसके मुँहसे सब बातें सुनकर नटको बड़ी प्रसन्नता हुई। इसके बाद वह अपने डेरे पर चला आया और अपनी पुत्रीसे भी सब समाचार सुनकर कूच करनेकी तयारी करने लगा। .. एलाकुमारने अपने पिताको एक पत्र लिखा और उसमें सब वृत्तान्त लिखकर अन्तमें यह निवेदन कर दिया कि मेरी ढूँढ खोज न की जाय। यह पत्र उसने अपने नौकरको दे दिया और आप उसी समय शहर छोड़कर उस नगरको चला गया जहाँ नटने अपने पहुँचनेकी सूचना दे दी थी। दूसरे दिन नट भी उससे जा मिला और कुमार उसके कुटुम्बमें रह कर नटकलाका अभ्यास करने लगा। ____ अभ्यासके बदलेमें जहाँ ऐसा अलौकिक रत्न मिलनेकी आशा हो, वहाँ फिर और कौनसा साधन चाहिए ? केवल छह महीनेमें वह अनेक प्रकारकी कसरतें और नत्य सीख गया और अन्तमें यह निश्चय हुआ कि अपनी कलामें उसने कितनी योग्यता प्राप्त की है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522798
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size7 MB
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