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________________ ५६९ गोत्रादिकके उच्चारणपूर्वक ' अद्य मासोत्तमेमासे....' इत्यादि संकल्प बोलना; अन्वष्टकादि खास खास श्राद्धोंके सिवाय अन्य श्राद्धों में पितादिकका सपत्नीकं श्राद्ध करना; अन्वष्टकादि श्राद्धों में माताका श्राद्ध अलग करना; नित्य श्राद्धोंमें आवाहनादि नहीं करना; नित्य श्राद्धको छोड़कर ( विश्वेदेवों' का भी श्राद्ध करना; विश्वेदेवोंके ब्राह्मणको पितरोंके ब्राह्मणोंसे अलग बिठलाना; देवपात्रों और पितृपात्रों को अलग अलग रखना; रक्षाका विधान करना और तिल बखेरना; नियुक्त ब्राह्मणोंकी इजाजत से विश्वेदेवों तथा पिता, पितामहादिक ( तीन पीढी तक ) पितरोंका अलग अलग आवाहन करना; विश्वेदेवों तथा पितरोंको अलग अलग आसन देकर बिठलाना और उनका अलग अलग पूजन करना; गंगा सिंधु सरस्वतीको अर्घ देना; ब्राह्मणों के हाथ धुलाना और उनके आगे भोजनके पात्र रखना; ब्राह्मणोंकी आज्ञा से अग्नौ करण करना; जौं ( यव ) बखेरना; प्रजापतिको अर्घदेना; अमुक देव या पितरको यह भोजन मिले, ऐसे आशयका मंत्र बोलकर नियुक्त ब्राह्मणोंको तृप्ति पर्यंत भोजन कराना; तृप्तिका प्रश्नोत्तर किया जाना; ब्राह्मणोंसे शेषान्नको इष्टोंके साथ भोजन करनेकी इजाजत लेना; भूमिको लीपकर पिंड देना; आचमन और प्राणायामका किया जाना; जप करना; कभी जनेऊको दाहने कंधे पर और कभी बाएँ कंधे पर डालना, जिसको 'अपसव्य और ' सव्य ' होना कहते हैं; आशीबदका दिया जाना; ब्राह्मणोंसे ' स्वधा' शब्द कहलाना, और उनको दक्षिणा देकर विदा करना; इत्यादि " ऊपरके इस त्रियाकांडसे, पाठकोंको यह तो भले प्रकार मालूम हो जायगा कि इस त्रिवर्णाचार में हिन्दूधर्मकी कहाँ तक नकल की गई है। परंतु इतना और समझ लेना चाहिए कि इस ग्रंथ में हिन्दूधर्मके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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