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हुआ मालूम होता है। जैनसिद्धान्तके अनुसार मिट्टी पापोंको हरनेवाली नहीं है और न कोई ऐसी चैतन्यशाक्त है जिससे प्रार्थना की जाय । हिन्दूधर्ममें मिट्टीकी ऐसी प्रतिष्टा अवश्य है । हिन्दु
ओंके वह्निपुराणमें, स्नानके समय मृत्तिकालेपनका विधान करते हुए मिट्टीसे यही पापोंके हरनेकी प्रार्थना की गई है, जैसा कि निम्नलिखित श्लोकोंसे प्रगट है:
"उद्धृतासि वराहेण कृष्णामित बाहुना । मृत्तिके हर मे पापं यन्मया पूर्वसंचितम् ॥ मृत्तिके जहि मे पापं यन्मया दुष्कृतं कृतम् ।
त्वया हृतेन पापेन ब्रह्मलोकं व्रजाम्यहम् ॥" * बह्निपुराणके इन श्लोकोंमेंसे पहले श्लोकका उत्तरार्ध और जिनसेन त्रिवर्णाचारके, ऊपर उद्धत किये हुए, दूसरे श्लोकका उत्तरार्ध, ये दोनों एक ही हैं । इससे और भी स्पष्ट है कि यह कथन हिन्दूधर्मसे लिया गया है । जैनियोंके आर्ष ग्रंथोंमें कहीं भी ऐसा कथन नहा है।
२-गोमूत्रसे स्नान । जिनसेनत्रिवर्णाचारमें, ऊपर उद्धृत किये हुए तीसरे श्लोकके अनन्तर, पंचेंगन्यसे अर्थात् गोमूत्रादिसे स्नान करना लिखा है और फिर सूर्यके सामने खड़ा होकर शरीरशुद्धि स्नानका विधान किया है। इसके पश्चात् सिरपर पानीके छींटे देनेके कुछ मंत्र लिखकर संध्या बन्दन करना और उसके बाद सूर्यकी उपासना करनी चाहिए, ऐसा लिखा है
यथाः
...* देखो शब्दकल्पद्रम कोशमें 'मृत्तिका' शब्द । १ गौका मूत्र, गोबर, घी दूध और दहीको ‘पंचगव्य' कहते हैं ।
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