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________________ ५५५ जैनी और गुरुके-निगुरियोंकी अपेक्षा गुरुवाले जैनी कुछ अधिक मौटी बुद्धिके होते हैं । मालूम नहीं, यह हिसाब कहाँ तक सच है । पर इसे एक विलायती साहबने प्रकाशित किया है इसलिए लाचार होकर मानना ही चाहिए। ६ भविष्य कथन । न्यायाचार्य पं० गणेशप्रशादजी साठीकी जन्मकुण्डली देखकर किसी भविष्यद्वक्ताने कहा है कि “आप साठ वर्षकी उमर तक न्यायशास्त्रोंका अध्ययन करते रहेंगे और उसके बाद यदि जीवेंगे तो फिर, जैन समाजकी सेवा करेंगे।" यह बात आपके 'उपपद' साठीसे भी ठीक मालूम होती है। ---लालबुजकड़ । ग्रन्थ-परीक्षा । (३) जिनसेन-त्रिवर्णाचार। (३) मेरी इच्छा थी कि मैं इस त्रिवर्णाचारके धर्मविरुद्ध कथनोंको विस्तारके साथ प्रगट करूं । परन्तु इस ग्रंथपर कई लम्बे चौड़े लेख हो गये हैं। इससे पहले लेखमें ग्रंथकर्ताकी धूर्तताका दिग्दर्शन कराते हुए धर्मविरुद्ध कथनोंका भी बहुत कुछ उल्लेख किया जा चुका है। और आगामी सोमसेन त्रिवर्णाचारकी परीक्षाके समय और भी बहुतसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522797
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages72
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size8 MB
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