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मराठीके सुप्रसिद्ध लेखक श्रीयुक्त नरसिंह चिन्तामणि केलकरने इस पुस्तककी भूमिका लिखी है जो कि पढ़ने योग्य हुई है । हमारी समझमें यह न आया कि इस पुस्तकका नाम पतिपत्नीप्रेम क्यों रक्खा गया' पुस्तकके विषयके साथ इस नामका यत्किञ्चित भी सम्बन्ध नहीं है ! दूसरा प्रन्थ सम्राट अशोक श्रायुक्त बालचन्द रामचन्द शहा वकीलने लिखा है। वकील साहबकी यह स्वतन्त्र रचना है। प्रसिद्ध मौर्यचक्रवर्ती अशोकने जिस समय कलिंगदेश पर विजय प्राप्त किया था और उसे अगणित मनुष्योंकी व्यर्थ हिंसासे उद्वेग हुआ था उस समयकी कुछ ऐतिहासिक घटनाओंको लेकर इस उपन्यासकी रचना की गई है। कथानक बहुत ही कुतूहलवर्धक, मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। कथानायकोंके
और दूसरे पात्रोंके चित्र जैसे चाहिए वैसे खींचे गये हैं। वे भावपूर्ण हैं और उन्होंने अपने स्वरूपकी रक्षा अन्ततक की है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि लेखक महाशयने अपनी इस पहली ही कृतिमें बड़ी भारी सफलता प्राप्त की है। इसके लिए हम उन्हें बधाई देते हैं। परन्तु हमें इस विषयमें सर्वथा सन्देह है कि कलिंगविजयके पहले अशोक बौद्धधर्मका प्रचार शस्त्रोंके बल पर करता था, या धर्मके लिए वह मनुष्यवध जैसे घोर पाप करनेमें न हिचकता था । लेखक महाशयको ग्रन्थके प्रारंभमें जिन ऐतिहासिक बातोपर इस उपन्यासकी नीव खड़ी की गई है उनका स्पष्टीकरण कर देना चाहिये था। दोनों ग्रन्थोंका मूल्य डेढ़ डेढ़ रुपया है । इस ग्रन्थमालाके प्रकाशक और लेखक सभी जैनी हैं। यह प्रसन्नताकी बात है कि जैनसमाजके शिक्षित सार्वजनिक साहित्यकी सेवामें भी प्रवृत्त होने लगे हैं। ग्रन्थमाला की सब पुस्तकें तात्या नेमिनाथ पांगल ठि० मोहन बिल्डिंग गिरगांव-बम्बईसे मिलती हैं।
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