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सांख्य २५ पदार्थोंको मानता है । १ पुरुष, २ प्रकृति, ३ महत् ( मन ), ४ अहंकार, ५-९ पंचतन्मात्र ( शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध ), १०-२० एकादश इन्द्रिय ( पांच ज्ञानेद्रिय, पाँच कर्मेन्द्रिय और अन्तरिन्द्रिय), २१-२५ स्थूलभूत ( पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ) । इन्हीं पदार्थोंसे जगत् बना हुआ है । जगतकी मूलकारण प्रकृति है । प्रकृति से महत् महतसे अहंकार, अहंकार से पंचतन्मात्र तथा एकादश इन्द्रियाँ और पंचतन्मात्रसे स्थूल भूत बने हैं । निरीश्वरता ।
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सांख्यदर्शन निरीश्वरवादी है और इसी रूप में उसकी प्रसिद्धि भी है | परन्तु कोई कोई लोग कहते हैं कि वह निरीश्वरवादी नहीं है। डाक्टर हाल ऐसे ही लोगों में से एक हैं । मेक्समूलर भी ऐसा ही मानते थे, परन्तु अब उनका मत बदल गया है । कुसुमांजलि के कर्त्ता उदयनाचार्य कहते हैं कि सांख्यमतावलम्बी 'आदि विद्वान' के उपासक हैं। अतएव उनके मत से भी सांख्य निरीश्वर नहीं है । सांख्यप्रवचनके भाष्यकार विज्ञानभिक्षुका कथन हैं कि ' ईश्वर नहीं है' यह कहना कापिलसूत्रका उद्देश्य नहीं है । अतएव इस विषयको कुछ विस्तार के साथ बतलाने की आवश्यकता है कि सांख्यदर्शन निरीश्वर क्यों हैं ।
सांख्यप्रवचन के प्रथम अध्यायका ९२ वाँ सूत्र उक्त निरीश्वरताका मूल है । वह सूत्र यह है : - “ ईश्वरासिद्धेः " । पहले इस सूत्रका अभिप्राय समझ लेना चाहिए ।
सूत्रकार इसके पहले 'प्रमाण' का वर्णन कर रहे थे । उन्होंने कहा है, प्रमाण तीन प्रकार के हैं; - प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द । ८९ वें सूत्रमें प्रत्यक्षका लक्षण बतलाया है - " यत्सम्बन्धं सत्तदाकारोल्लेखिविज्ञानं तत्प्रत्यक्षम् । "" अतएव जो सम्बन्ध नहीं है वह
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