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शताब्दाम हुए हैं। उन्होंने शक संवत् ९४८ (वि. सं. १०१३ ) में पार्श्वनाथचरितकी रचना की है। इस लिए यह त्रिवर्णाचार उनसे पीछेका बना हुआ है और कदापि दो शताब्दी पहले होनेवाले भगवज्जिन सेनादिका बनाया हुआ नहीं हो सकता ।
( ३ ) इस ग्रंथ में अनेक स्थानों पर गोम्मटसारकी गाथायें भी पाई जाती हैं । १४ पर्व में आई हुई गाथाओं में से एक गाथा इस प्रकार हैं:
" एयंत बुद्धदरसी विवरीओ वंभतावसी विणओ । satar संसदि मक्कडिओ चैव अण्णाणी ॥ १२ ॥ यह गाथा गोम्मटसारमें नम्बर १६ पर दर्ज है । गोम्मटसार ग्रंथ श्री नेमिचंद्र सिद्धान्तचक्रवर्तीका बनाया हुआ है; जो कि महाराजा चामुंडराय के समय में विक्रमकी ११ वीं शताब्दी में हुए हैं । महाराजा चामुंडरायका जन्म शक संवत् ९०० (वि. सं. २०३५ ) में हुआ था। इससे भी यह त्रिवर्णाचार भगवजिनसेनादिसे बहुत पीछेका बना हुआ सिद्ध होता हैं।
( ४ ) इस ग्रंथ के चौथे पर्व में, एक स्थान पर ग्रन्थों को और दूसरे स्थानपर ऋषियोंको तर्पण किया है। ग्रंथोंके तर्पण में आदिपुराण, उत्तरपुराण, हरिवंशपुराण, और गोम्मटसारको भी अलग अलग तर्पण किया है । ऋषियों के तर्पण में प्रथम तो लोहाचार्य के पश्चात् 'जिनसेन' को तर्पण किया है ( जिनसेनस्तृप्यतां । ); फिर वीरसेन के पश्चात् 'जिनसेन'का तर्पण किया है और फिर नेमिचन्द्र तथा गुणभद्राचार्यका भी तर्पण किया है । १० वें पर्व में जिनसेन मुनिकी स्तुति भी लिखी है और चौथे पर्व के एक श्लोक में जिनसेनका हवाला दिया हैं। यथा:---
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