SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६ - इस कथा कुन्दकुन्दके मातापिताके तथा स्थानादिके जो नाम दिये हैं, कह नहीं सकते कि वे कहाँ तक ठीक हैं । क्योंकि एक तो यह कथा किसी आधुनिक लेखककी लिखी हुई, और दूसरे कुमुदचद्र राजा कुमुदचन्द्रिका रानी; कुन्दश्रेष्ठी और कुन्दलता सेठानी, ये नाम बिलकुल कल्पित जैसे मालूम होते हैं। आश्चर्य नहीं, जो सेठ और सेठानीके नाम केवल ' कुन्दकुन्द ' नामको अन्वर्थक सिद्ध करनेके लिए ही गढ़े गये हों । तत्त्वार्थाधिगम भाष्यकी प्रशस्तिमें उमास्वातिकी माताका नाम उमा और पिताका नाम स्वाति लिखा है और इसीलिए उनका नाम उमास्वाति पड़ गया बतलाया है । कुन्द श्रेष्ठी और कुन्दलताके नाम इसीकी छाया पर गढ़े गये जान पड़ते हैं। वास्तवमें कुण्डकुन्द ग्रामके कारण ही पद्मनन्दिका नाम कुन्दकुन्द प्रसिद्ध हुआ है जैसा कि पहले लिखा जा चुका है। कुन्दलता और कुन्दश्रेष्ठीके नामोंका उल्लेख किसी प्राचीन ग्रन्थमें या शिलालेखादिमें भी नहीं मिलता। ___ इस कथाके इस अंशकी साक्षी और भी कई स्थानोंमें मिलती है कि कुन्दकुन्दस्वामी विदेह क्षेत्रको गये थे। देवसेनसूरिका दर्शनसार संवत् ९०९ का लिखा हुआ है। उसमें एक जगह लिखा है:-- जइ पउमणंदिणाहो सीमंधरसामिदिव्वणाणेण । ण विवोहइ तो समणा, कहं सुमग्गं पयाणंति ॥ . । अर्थात् यदि पद्मनन्दिनाथ, सीमंधर स्वामीके दिव्यज्ञानके द्वारा उपदेश न देते-न समझाते, तो श्रमण या मुनिजन सुमार्गको कैसे जानते ? इससे मालूम होता है कि आजके समान नववीं दशवीं शताब्दीमें भी यह विदेहक्षेत्रगमनकी बात प्रसिद्ध थी। पंचास्तिकाय टीकाकी उत्थानिकामें ब्रह्मदेवने भी इस प्रसिद्ध कथाका उल्लेख किया है। (यह उत्थानिका इसी लेखके पृष्ठ (३७४७५) में उद्धृत की जा चुकी है।) Jain Education International For Personal & Private Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy