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________________ ३७८ गुणनन्दि, देवेन्द्रादि भी कर्णाटकमें ही हुए हैं, इस लिए भी अनुमान होता है कि वे कर्णाटक प्रान्तके ही होंगे। श्रीयुक्त तात्या नेमीनाथ पांगलने किसी 'ज्ञानप्रबोध' नामक भाषाग्रन्थके आधारसे कुन्दकुन्दाचार्यकी एक कथा लिखी है । उसमें उन्हें मालवप्रान्तान्तर्गत बारापुर (बाराँ) के रहनेवाले बतलाया है और उज्जयिनी पट्टका अधिकारी बतलाया है । परन्तु उक्त कथाको छोड़कर इस बातका और कोई विश्वस्त प्रमाण नहीं है। समयविचार। नन्दिसंघकी पट्टावलीमें लिखा है कि पौष वदी ८ विक्रम संवत् ४९ में कुन्दकुन्दाचार्य पट्ट पर बैठे । उस समय उनकी अवस्था ३३ वर्षकी थी। ५१ वर्ष १० महीने संघका शासन करके वे संवत् १०१ के लगभग स्वर्गवासी हुए । परन्तु विचार करनेसे यह समय बिलकुल कल्पित प्रतीत होता है। इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतारके मतसे भगवान् महावीरके निर्वाणके ६८३ वर्ष तक अंगज्ञानकी प्रवृत्ति रही-इसके बाद उसका लोप हो गया। ६८३ वर्षाका हिसाब इस प्रकार है:इंद्रभूति गणधर (केवली) .... १२ वर्ष सुधर्माचार्य , .... .... १२ वर्ष जम्बूस्वामी , .... विष्णु आदि पाँच श्रुतकेवली . १०० वर्ष विशाखदत्तादि ग्यारह-अंग-दशपूर्व–पाठी १८३ वर्ष नक्षत्रादि ग्यारह अंगके पाठी २२० वर्ष सुभद्रादि आचारांगके पाठी ११८ वर्ष ६८३ वर्ष ३८ वर्ष Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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