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माणुओंका मिलना, बिछुरना इस चिकनाहट और खुरदरेपनके कारणसे ही होता है। जिन दो परमाणुओंमें ये दोनों गुण समान एकही प्रकारके होते हैं, वे परमाणु आपसमें नहीं मिलते । अर्थात् यदि एक परमाणुमें इतना चिकनाहट है जितना दूसरेमें है, तो वे दोनों परमाणु एक साथ नहीं मिलेंगे और यदि एक परमाणुमें इतना खुरदरापन है कि जितना दूसरेमें तो वे परमाणु भी आपसमें | नहीं मिलेंगे और यदि एक परमाणु इतना "चिकनाहट है कि : जितना दूसरेमें खुरदरापन है तो भी उनका आपसमें मेल नहीं हो सकेगा; परन्तु यदि एककी चिकनाहट दूसरेके खुरदरेपनसे दो गुण (दर्ने ) अधिक है, तो ये दोनों परमाणु एक दूसरेकी ओर आकर्षित होंगे और मिल जायेंगे । संसारमें समस्त पदार्थोंका . बनना और बिगडना इसी सिद्धान्त पर निर्भर है और समस्त पदा- . थोंके परमाणुओंका आपसमें मिला रहना व जुदा जुदा होना इसी सिद्धान्तके आधार पर है। ___ पुद्गलस्कन्ध छह प्रकारके हैं:-- १ वादरवादर जैसे पत्थर, लकड़ी, मिट्टी वगैरह । २ बादर जैसे दूध, पानी वगैरह । ३ बादरसूक्ष्म जैसे धूप, चाँदनी वगैरह । ४ सूक्ष्म बादर जेसै शब्द, गन्ध आदि । ५ सूक्ष्म जैसे आठःप्रकारके ज्ञानावरणीय आदि कर्म अर्थात् वह सूक्ष्म पुद्गल कि जिसका बन्धन आत्माके साथ आत्माके रागद्वेषके कारण होता है। ६ सूक्ष्म सूक्ष्म जैसे परमाणु । __ हम संसारमें जो भाँति भाँतिके नीले, पीले रंग देखते हैं, खट्टे, मीठे, कडवे आदि रस चखते हैं, तरह तरहकी गन्ध सूंघते हैं, कोमल, कठोर, शीत, उष्णादिका जो अनुभव करते हैं और मीठे, सुरीले जो शब्द सुनते हैं, यह सब पुद्गल द्रव्यका खेल है । ये
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