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इच्छा भी नहीं होती । बल्कि अब तो हम उस पुस्तकोंके सत्यको कंठ करके इस तरह व्यवहारमें लाने लगे हैं कि मानो उसके 'आविष्कारक हम ही हैं-मानों हम सिद्ध करना चाहते हैं कि वह विदेशी स्कूलमास्टरोंके मुँहके शब्दोंकी केवल जड़ प्रतिध्वनि ही नहीं है-वह हमारे ही कण्ठका स्वर है। ___ जो लोग नये पाठको रटते हैं, उनका उत्साह स्वभावसे ही कुछ अधिक हुआ करता है । सीखा हुआ तोता जितने ऊँचे स्वरसे बोलता है, उसके सिखानेवालेका गला उतना ऊँचा नहीं हुआ करता । सुनते हैं कि जिन जातियोंमें विलायती सभ्यताका प्रवेश पहले पहल होता है, वे इस विलायती मद्यसे इतनी अधिक मतवाली हो जाती हैं कि उनके लिए जमीन छोड़ना मुश्किल हो जाता हैपरन्तु जिन जातियोंकी नकल करके ये जातियाँ मद्यपान करती हैं, वे स्वयं इतनी कर्तव्यविमूढ और मतवाली नहीं देखी जाती । इसी तरह देखते हैं कि जिन बातोंके मोहसे स्वयं उन बातोंके सृष्टिकर्ता मोहित नहीं होते हैं-अपने विश्वासमें बहुत कुछ अचल बने रहते हैं, उन्हींका मोह हमें एकदम जमीन पर सुला देता है ! अभी थोड़े ही दिन हुए, विलायतमें एक सभा हुई थी। उसमें एकके बाद एक इस तरह कई भारतवासियोंने उठकर कहा कि भारतवर्ष में स्त्रीशिक्षाका अभाव है। इस अभावकी पूर्तिके लिए क्या करना चाहिए, इसके सम्बन्धमें वे बहुतसी अतिशय पुरानी विलायती बातोंका तोतेके माफ़िक पाठ कर गये ! अन्तमें एक अँगरेज़ सज्जनने कहा"इस विषयमें मुझे बहुत सन्देह है कि भारतवर्षकी स्त्रियोंको अँगरेज़ी कायदेसे सिखलाना ही सच्ची शिक्षा है और यह शिक्षा ही उनके लिए एकमात्र कल्याणकारिणी है।" यहाँ हम इस विषयमें तो कुछ कहना
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