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________________ आवश्यक सूचनायें। १. कर्णाटक जैन-कवि-जैनहितैषीमें इस विषयके जो लेख प्रकाशित हुए थे, वे अब संग्रह करके जुदा छपा लिये गये हैं। इसके छपानेमें एक धर्मात्मा सेठने ४२) की सहायता की है, इस लिए लागतमेंसे उक्त सहायता बाद देकर इसका दाम सिर्फ आधा आना रक्खा गया है। साहित्यसेवियोंमें वितरण करनेके लिए इसकी दश दश पाँच पाँच प्रतियाँ सबको मँगा रखनी चाहिए। . २. श्रमण नारद-जैनहितैषीके पिछले अंकमें कर भला होगा भला' के नामसे जो छोटासा उपन्यास प्रकाशित हुआ था, वह बहुत ही शिक्षाप्रद और परोपकारभावोंको बढ़ानेवाला है। इसलिए हमने उसकी ३००० प्रतियाँ मुफ्त वितरण करनेके लिए जुदा छपा ली हैं। जो भाई चाहें, आधा आनेका टिकट भेजकर मँगा लेनेकी कृपा करें। आध आनेमें चार प्रतियाँ भेजी जा सकती हैं । उन्हें जैन 'अजैन चाहे जिसे पढ़नेके लिए देना चाहिए । ३ जैनहितैषीका यह अंक भी डबल निकाला जाता है। हितैषी अपने समयसे बहुत पिछड़ गया था, इस लिए इसके दो अंक संयुक्त निकालना पड़े। आगामी अंक जुदा जुदा ही निकाले जावेंगे और इस बातकी कोशिश की जायगी कि जिस महीनेका जो अंक हो, वह उसी महीनेके भीतर निकल जावे । .४ हिन्दीग्रन्थरत्नाकर सीरीज़-लगभग दो वर्षसे हम इस ग्रन्थमालाको निकालने लगे हैं । इतने ही समयमें सर्वसाधारणमें इसकी बहुत प्रसिद्धि हो गई है। हिन्दीकी यह सर्वोत्तम ग्रन्थमाला समझी जाने लगी है । इसके ग्रन्थोंको सभीने पसन्द किया है; परन्तु खेद है कि हमारे जैनी भाईयोंमें इसके बहुत ही कम ( न होनेके बराबर ) ग्राहक हुए हैं। हमें अपने भाईयोंसे इस काममें बहुत कुछ सहायता मिलनेकी आशा है। उन्हें इसके स्थायीग्राहक अवश्य बनना चाहिए। नमूनेके लिए इसका एकाद ग्रन्थ मँगाकर देख लेना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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