SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२९ गत एव न ते निवर्तते स सखा दीप इवानिलाहतः। अहमस्य दशेव पश्य मामविषह्यव्यसनेन धूमिताम् ॥ रति कहती है--वसन्त, देखो तुम्हारा सखा (कामदेव ) हवाके मारे दीपककी तरह चला ही गया, अब नहीं लौटनेका । मैं, दीपककी बुझनेके पीछेकी दशा ऐसी असह्य कष्टरूप धुएँसे मलिन हो रही (या सुलग रही ) हूँ। यह बुढापेका विलाप है। अस्तु, मेरे कहनेका मतलब यह है कि कालिदास अगर ( रघुवंश लिखते समय ) बुढ़ापेके गौरवपूर्ण कर्तव्यको समझते तो कभी बूढोंके लिये मुनिवृत्तिकी व्यवस्था न करते। बिस्मार्क मोल्ट्के और फ्रेडरिक विलियम बूढ़े थे, अगर वे मुनिवृत्ति ग्रहण कर लेते तो इस जर्मननेशनलिटी (Nationality) की कल्पना कौन करता ? टियर-बूढ़े टियर अगर मुनिवृत्ति ग्रहण कर लेते तो फ्रान्सकी स्वाधीनता और साधारण तन्त्रकी स्थापना कहाँसे होती ? ग्लाडस्टन और डिटेली बूढ़े थे, अगर वे मुनिवृत्ति ग्रहण करते तो पार्लियामेंटका रिफार्म (सुधार) और आयरिश चर्चका डिसेस्टाब्लिशमेंट (disestablishment) कैसे होता ? मेरी समझमें बुढ़ापा ही वास्तवमें काम करनेका समय है । मैं आँत और दाँतसे ही चौथेपनमें पहुँचे हुए बूढेकी बात नहीं कहता-उसका तो दुबारा लड़कपन आगया समझना चाहिये। जो लोग जवान भी नहीं रहे, मगर बूढ़े भी नहीं हुए, उन्हीं प्रौढ पुरुषोंकी बात कह रहा हूँ। जवानी काम करनेकी अवस्था है सही, किन्तु उस समय पूर्ण और पक्का अनुभव न होनेसे बड़े और महत्त्वके काम अच्छी तरह नहीं किये जासकते । उस समय एक तो बुद्धि कच्ची रहती है, दूसरे राग द्वेष और भोगवासनाकी मात्रा अधिक होती है। एक दो अलौ. किक शक्तिशाली महापुरुषोंको छोड़कर, हर एक आदमी जवानीमें Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy