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________________ बराबर ग्रंथमें लिखा चला आता है। कुछ भी हो, इस सम्वत्से इतना पता जरूर चलता है कि यह ग्रंथ वि० संवत् १६६७ ही नहीं, बल्कि संवत् १७३१ से भी पीछेका बना हुआ है। जहाँ तक मैंने इस विषय पर विचार किया है, मेरी रायमें यह ग्रंथ विक्रमकी अट्ठारहवीं शताब्दीके अन्तका या उससे भी कुछ बादका बना हुआ मालूम होता है और इसका बनानेवाला अवश्य ही कोई धर्त व्यक्ति था। जुगलकिशोर मुख्तार ता. १२-६-१४. देवबंद, जि० सहारनपुर । - विविध प्रसंग। जैन और वैष्णव अग्रवालोंका सम्बन्ध । . ____ जैनमित्रके ज्येष्ठ शुक्ला २ के अंकमें सम्पादक महाशयका एक लेख प्रकाशित हुआ है। उसमें उन्होंने इस बातका उपदेश दिया है कि-"जैन और वैष्णव अग्रवालोंमें जो परस्पर बेटीव्यवहार होता है वह बन्द कर दिया जाय । जैन अग्रवालोंकी संख्या भी थोडी नहीं है। प्रान्तीयता और पहनाव उडावके कारण उन्होंने जो अपने ही भीतर कई भेद कर रक्खे हैं, उन्हें मिटा देना चाहिए और एक छोरसे दूसरे छोर तकके जैन अग्रवालोंमें परस्पर बेटीव्यवहार जारी कर देना चाहिए। वैष्णवोंके साथ सम्बन्ध करनेसे जैन कन्यायें वैष्णव हो जाती हैं और वैष्णव कन्यायें जैन घरमें अपना वैष्णव धर्म साथ लिये आती हैं और कुछ समयमें उस घरको वैष्णव बना डालती हैं । इससे जैनियोंकी संख्या घटती जा रही है।" हमारी समझमें ब्रह्मचारीजीने इस विषय पर अच्छी तरह विचार नहीं किया। जैन वैष्णव अग्रवालोंके पुराने सम्बन्धको तोड़नेमें सिवा हानिके कुछ लाभ नहीं है । प्राचीन भारतकी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522795
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size13 MB
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