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इसी कारण तुम मुझे अपनेसे जुदा और मैं तुम्हें अपनेसे जुदा समझता हूँ। इस परदेके कारण मनुष्य अच्छी तरह नहीं देख सकता
और पापके गढ़ेमें जा पड़ता है। तुम्हारी आँखोंके आगे इसी मायाका परदा पड़ा है, इससे तुम नहीं देख सकते कि इन जातिभाइयों ( मनुष्य जाति ) के साथ तुम्हारा कितना निकटका सम्बन्ध है । वास्तवमें यह सम्बन्ध तुम्हारे शरीरके एक दूसरे अवयवके सम्बन्धकी अपेक्षा बहुत ही निकटका है । तुम्हारे जीवनका सम्बन्ध जैसा दूसरोंके जीवनके साथ है वैसा ही दूसरोंके जीवनका सम्बन्ध तुम्हारे जीवनके साथ है । यह सम्बन्ध बहुत ही गाढा है। संसारमें बहुत थोड़े पुरुष हैं जो सत्यको जानते हैं। इस सत्यकी प्राप्ति करना ही मनुष्य जीवनका कर्तव्य है । इसको प्राप्त करनेके लिए मैं तुम्हें थोड़ेसे मंत्र बतलाता हूँ। इन्हें तुम अपने हृदयमें लिख रक्खोः
१ जो दूसरोंको दुःख देता है वह मानो अपनेमें आपको दुःखदेनेवाले बीजोंको बोता है।
२ जो दूसरोंको सुख देता है वह अपने हृदयमें आपको सुखी करनेके बीजोंको बोता है। ... ३ यह बड़ा ही भ्रामक विचार है कि मैं अपने जातिभाइयोंसे जुदा हूँ। ___ इन तीन मंत्रोंकी आराधना करते रहनेसे तुम सत्यके मार्ग पर आ पहुँचोगे। . पाण्डु-महानुभाव श्रमणमहाराज, आपके वचनोंका मर्म बहुत ही गहरा है । मैं इन वचनोंको अपने हृदयमें लिख चुका । मैंने बनारस आते समय आप पर जो थोडीसी दया की थी और वह भी ऐसी कि जिसमें एक पैसाकी भी खर्च न था, उसका फल मुझे इतना बडा....
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