SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७९ . अभी अभी एक अच्छी वर्षा हो गई है, इससे ठंडी हवा चलने लगी है। बादलोंके हट जानेसे धूप निकल आई है और उससे दिन बहुत ही सुन्दर मालूम होता है। वृक्षोंके पत्ते पानीसे धुल गये हैं और हवाके झोके लगनेसे आनन्दमें थिरक रहे हैं। प्रकृतिदेवीने एक अपूर्व ही शोभा धारण की है। ___ आगे ऊँची चढाई आजानेसे जब घोडोंने अपनी चाल धीमी कर दी, तब धनिकने देखा कि सड़की पटली परसे एक बौद्ध श्रमण नीचेकी ओर दृष्टि किये हुए जा रहा है। उसकी मुखमुद्रापर शान्तिता, पवित्रता और गभीरता झलक रही है। उसे देखते ही सेठके हृदयमें पूज्यभाव उत्पन्न हुआ। वह विचार करने लगा-अहा ! चेष्टासे ही मालूम होता है कि यह कोई महात्मा है-पवित्रताकी मूर्ति है और धर्मका अवतार है । सज्जनोंके समागमको विद्वानोंने पारस-मणिकी उपमा दी है। जिस तरह पारसके संयोगसे लोहा सुवर्ण हो जाता है, उसी तरह सज्जनोंके समागमसे भाग्यहीन भी सौभाग्यशाली हो जाता है। यदि यह साधु भी बनारसको जाता हो और मेरे साथ गाडीमें बैठना स्वीकार कर ले, तो बहुत अच्छा हो । अवश्य ही इसके समागमसे मुझे लाभ होगा। यह सोचकर सेठने श्रमण महात्माको प्रणाम किया और गाडीपर बैठ जानेके लिए अनुरोध किया। श्रमणको काशी ही जाना था, इसलिए वे गाडीमें बैठ गये और बोले;-आपने मेरे साथ बड़ा भारी उपकार किया। इसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मैं बहुत समयसे पैदल चल रहा हूँ, इसलिए बहुत ही थक गया हूँ। यह तो आप जानते ही हैं कि श्रमण लोगोंके पास कोई ऐसी वस्तु नहीं रहती जिसे देकर मैं आपके इस ऋणसे उऋणसे हो सकूँ। तो भी मैं परमगुरु महात्मा बुद्धदेवके उपदेशरूप अक्षय कोशसे जो कुछ संग्रह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy