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________________ १९८ द्यार्थियोंकी १६४९ है । १००० एकड़ जमीनमें विद्यार्थियों के श्रम खेती होती है । मानसिक शिक्षाके साथ साथ भिन्न भिन्न चालीस व्यवसायोंकी शिक्षा दी जाती है । इस संस्थामें शिक्षा पाकर लगभग ३००० आदमी दक्षिण अमेरिकाके भिन्न भिन्न स्थानोंमें स्वतन्त्र रीतिसे काम कर रहे हैं । ये लोग स्वयं अपने प्रयत्न और उदाहरणसे 1 अपनी जातिके हजारों लोगोंको आधिभौतिक और आध्यात्मिक, धर्म और नीतिविषयक शिक्षा दे रहे हैं । वाशिंगटनको टस्केजी संस्थाका जीव या प्राण समझना चाहिए । आपही के कारण इस संस्थाने इतनी सफलता प्राप्त की है। आप पाठशाला शिक्षकका काम भी करते हैं और संस्थाकी उन्नति के लिए गाँव गाँव, शहर शहर, भ्रमण करके धन भी एकट्ठा करते हैं। उन्हें अपनी स्त्रीसे भी बहुत सहायता मिलती है। वे यह जानने के लिए सदा उत्सुक रहते हैं कि अपनी संस्थाके विषयमें कौन क्या कहता है । इससे संस्थाके दोष मालूम हो जाते हैं और सुधार करनेका मौका मिलता है । आपका अपनी सफलताका रहस्य इस प्रकार बतलाते हैं: १. ईश्वरके राज्य में किसी व्यक्ति या जातिकी सफलताकी एक ही कसौटी है । वह यह कि प्रत्येक प्रयत्न सत्कार्य करने की प्रेरणा से प्रेरित होकर करना चाहिए । २. जिस स्थान में हम रहें उस स्थानके निवासियोंकी शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति करनेका यत्न करना ही सबसे बड़ी बात है । ३. सत्कार्यप्रेरणाके अनुसार प्रयत्न करते समय किसी व्यक्ति, समाज या जातिकी निन्दा, द्वेष और मत्सर न करना चाहिए। जो काम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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