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________________ २४१ है। यह सब करके भी वे अपने अपने धर्मोको नहीं भूले हैं-राष्ट्रीय भावोंकी रक्षा करते हुए अपने धर्म या सम्प्रदायोंकी उन्नतिमें भी वे सब तरहसे दत्तचित्त रहते हैं । दशके राष्ट्रीय अगुओं से इस तरहके बीसों सज्जनोंके नाम गिनाये जा सकते हैं । ___ परन्तु जैनी इस विषयमें सबसे जुदा हैं । देशहितके सैकड़ों कार्यक्षेत्र हमारे सामने पडे हैं परन्तु उनमेंसे एकमें भी हम अपने भाइयोंको नहीं देखते। इंडियन नेशनल कांग्रेसमें, प्रादेशिक समितियोंमें, औद्योगिक कॉन्फरेंसमें, सोशल कॉन्फरेंसमें, साहित्यपरिषदोंमें, गोखलेकी भारतसेवकसमितिमें, सरकारी कौंसिलोंमें और सार्वजनिक हितका आन्दोलन करनेवाली अन्यान्य संस्थाओंमें हम किसी जैनीका नाम नहीं सुनते । सार्वजनिक कल्याणकी घोषणा करनेवाले दोचार समाचारपत्र भी जैनी नहीं निकालते । ऐसे पत्रोंमें लेख भी वे नहीं लिखते। इस विषयकी कोई पुस्तक भी किसी जैनीकी कलमसे नहीं निकली । कहीं किसी जैनीको देशहितका व्याख्यान देते हुए या आन्दोलन करते हुए भी नहीं सुना। सार्वजनिक साहित्यक्षेत्रमें भी उनका दर्शन दुर्लभ है । इस समय एक भी जैनी किसी भाषाके वर्तमान साहित्यका ख्यातनामा लेखक या कवि नहीं है। शिक्षाप्रचारका काम जैनी करते हैं। वे चाहें तो अपने बच्चोंके साथ साथ दूसरोंके बच्चोंको भी ज्ञानदान कर सकते हैं, परन्तु इतनी उदारता भी उनमें नहीं। उनकी शिक्षासंस्था के द्वार दूसरोंके लिए एक तरहसे बन्द ही हैं । सार्वजनिक शिक्षासंस्थाओं में भी जैनी आर्थिक सहायता नहीं देते। अवश्य ही स्वर्गीय सेठ प्रेमचन्द्र रायचन्द्रने कलकत्ता यूनीवर्सिटीको और सेठ वसनजी त्रिकमजी जे.पी. ने बम्बईके साइन्स इन्सिट्यूटको दो बड़ी बड़ी रकमें देकर जैनियोंकी लज्जा रख ली है। इस तरह और कहाँ तक गिनाये जावें किसी Jain Educatio international For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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