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________________ २१९ २. शिवाजीका आत्मदमन । लेखक पं० काशीनाथ शर्मा । प्रकाशक, पं० खुन्नूलाल रावत, फर्रुखाबाद । पृष्ठसंख्या ६६ । मूल्य )॥ आना। यह 'सुभे कल्याण' नामक मराठी पुस्तकका हिन्दी अनुवाद है। इसमें वीरकेसरी शिवाजीके इन्द्रियनिग्रह सच्चरित्र और औदार्यका एक उपन्यास रूपमें प्रभावशाली चित्र खींचा गया है। इस प्रकारके ऐतिहासिक और शिक्षाप्रद उपन्यास हिन्दीमें बहुत थोड़े हैं । यद्यपि इसकी भाषा जितनी चाहिए उतनी अच्छी नहीं लिखी गई; उसमें मराठीपन बहुत अधिक रह गया है, तो भी भाव और शिक्षाके लिहाजसे इसकी गणना अच्छी पुस्तकोंमें करनी चाहिए। अनुवाद जिस भाषासे किया जाय, यदि अनुवादक उसका केवल भाव समझकर अपने शब्दोंमें उसे प्रकाशित करें-शब्दशः अनुवाद न करें, तो वे इस प्रकारके भाषादोषोंसे बच सकते हैं। ३. स्वर्गमाला-बनारससे इस नामकी एक ग्रन्थमाला अभी कुछ ही महीनोंसे प्रकाशित होने लगी है । इसके लेखक और प्रकाशक बाबू महावीरप्रसादजी गहमरी हैं । एक वर्षमें डवल क्राउन१६ पेजी साइजके १००० पृष्ठ निकलेंगे और उनका मूल्य सिर्फ दो रुपया होगा। अब तक इसके तीन खण्ड प्रकाशित हुए हैं और उनमें 'स्वर्गके रत्न ' नामकी पुस्तक निकल रही है । संभवतः चौथे खण्डमें यह पुस्तक समाप्त हो जायगी। बड़ी ही अच्छी पुस्तक है। इसमें लगभग १०० उपदेश हैं और प्रत्येक उपदेश विस्तारके साथ तरह तरहके दृष्टान्तोंसे समझाया गया है। भाषा भी सरल और सबकी सम-- झमें आने योग्य है । इसका प्रत्येक उपदेश सचमुच ही स्वर्गीय रत्न है । ग्रन्थकर्ताके बड़े ही ऊँचे उदार और धर्ममय भाव हैं। प्रत्येक धर्म और सम्प्रदायका पुरुष इनसे लाभ उठा सकता है । इस समय भार.. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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