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________________ २०३ और 'कृष्णकान्तका बिल' नामक उपन्यासोंमें रूपज मोह और गुणज प्रेमका विश्लेषण करके दिखलाया है कि स्त्रीके रूपकी अपेक्षा गुणका मूल्य बहुत ही अधिक है। ___ इसके बाद कन्याकी शिक्षाके प्रबन्धमें विचार करना चाहिए। केवल पढ़ना जान लेनेसे शिक्षा नहीं होती। हमारी कन्यायें प्रायः ऐसे स्कूलोंमें शिक्षा पाती हैं जहाँ वे हमारी जातीय विशेषता और गौरवकी एक भी बात नहीं सीखतीं । जो अच्छी कन्यापाठशालायें या कन्याविद्यालय हैं वहाँ पढाईका खर्च अधिक है इस लिए दरिद्रताके कारण लोग उनमें पढ़ानेका प्रबन्ध नहीं कर सकते । बहुत लोग यह सोच कर भी रह जाते हैं कि लडकीके विवाहमें हजार दो हैजार रुपये लगेंगे ही, तब उसको पढ़ानेके लिए ऊपरसे और अधिक खर्च क्यों करें ? परन्तु अब उन्हें यह जाना लेना चाहिए कि आज कलके वर सुशिक्षित कन्याओंको बहुत पसन्द करते हैं इसलिए वे उन्हें मामूलीसे भी कम खर्च कराके खुशी खुशी लेनेके लिए राजी हो सकते है. और इस तरह केवल वर्चकी ओर नजर रखकर भी विचार किया जाय तो कन्याकी शिक्षाके लिए खर्च करना फिजूल खर्च नहीं कहा जा सकता। हमारी कन्याओंको किस प्रकारकी शिक्षा मिलनी चाहिए, इस विविषयका विस्तारपूर्वक विवेचन करनेके लिए यहाँ स्थान नहीं है। तो भी संक्षेपतः यह कहा जा सकता सकता है कि स्कूलों और घरोंमें लडकियोंको ऐसी शिक्षा मिलना चाहिए जिससे वे विवाह होनेके पश्चात् आदर्श गृहणियाँ बन सकें। एक ओर तो वे पति और दूसरे कुटुम्बी जनोंकी सेवा शुश्रूषा कर सकें और दूसरी ओर अपनी सन्तानको वैज्ञानिक प्रणालीके अनुसार लालित पालित और शिक्षित कर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522794
Book TitleJain Hiteshi 1913 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1913
Total Pages150
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size14 MB
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